एहसास, क्या होता है। एहसास, अकेलेपन का, तनहाइयों का और … । शायद मैंने आज ही महसूस किया, जब अपने घर का दरवाजा खुद खोला। आज अपने इस घर में, खुद के इस घर में, जिसको एक-एक तिनका जोड़ कर बड़ी लगन से बनवाया था, उस घर मे आज मैं अकेला हूँ।
उसका सिर्फ एक एहसास ही अब रह गया हो जैसे।
जैसे कल की ही बात हो, अरे हाँ कल की ही तो बात थी, जब वो कह रही थी मुझसे …
उठो कॉलेज नहीं जाना क्या? मैंने चाय चढ़ा दी है। जल्दी करो, देर हो जाएगी…
नहीं ….
मैं नहीं मानता, सारा घर देख आया, नहीं, कोई नहीं है यहाँ, कहाँ चली गयी हो तुम।
कौन अब मुझे आवाज देगा, कौन कहेगा गीली तौलिया बिस्तर पर न डाला करो। जल्दी करो, नास्ता तैयार कर लिया है, क्या कर रहे हो, आ जाओ जल्दी।
नहीं, अब और नहीं, अब मै अकेलापन नहीं सह सकता, तुम कहाँ हो, आ जाओ, देखो मुझे…, तुम्हारे बिना एक दिन भी रह पाना अब संभव नहीं है।
सहसा जैसे मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रख कर कहा, देखो मैं यही हूँ, तुम्हारे पास, तुम्हारे बिना मैं भी तो अकेली हूँ, तुम्हे छोड़ कर कहाँ जा सकती हूँ, उठो…, मेरे पास आओ।
सहसा मेरी तंद्रा टूटी…
उफ़,
हे प्रभु! मैं ये क्या सोच, रहा था। कितना भयावह था वो अकेलापन, वो सन्नाटा, उफ़! तुरंत, आइ० सी० यु० के बाहर लगी कुर्सी से उठा, और आइ० सी० यु० के दरवाजे के काचं से झाक कर अन्दर देखा। सब शांत सा लगा। हे प्रभु! जो भी मैंने सपने में सोचा उसे कभी भी सच ना होने देना। वो सपना था, और सपना ही रहने देना।
सहसा लगा कि मेरी प्रार्थना सफल हो गयी। वो, बेड पर से देख कर मुझे हलके से मुस्कुरा रही थी, दर्द था आखों मैं, पर जो सपना मैंने अभी देखा था शायद उसने भी देखा होगा। हम, अलग – अलग तो थे नहीं…
और शायद इस बात का अंदाजा अब हो गया था मुझे। यही सोच कर मेरे गालो पर न जाने कहाँ से दो बूंद टपक पड़े, और सामने देखा तो लगा जैसे वो सर हिला कर कह रही हो, ख़बरदार, फिर कभी ऐसा सोचा।
मैंने अपने दोनों कानो पर हाँथ लगा कर वोला, नहीं कभी नहीं, कभी नहीं …
- डॉ ज्ञान प्रकाश
शिक्षा: मास्टर ऑफ़ साइंस एवं डॉक्टर ऑफ़ फिलास्फी (सांख्यकीय)
कार्य क्षेत्र: सहायक आचार्य (सांख्यकीय), मोतीलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश ।
खाली समय में गाने सुनना और कविताएँ एवं शेरो शायरी पढ़ना ।