रिवाजों की तेज धूप में
उत्तरदायित्वों की ठोस भूमि
को फोड़ कर निकलती हैं
ये नर्म ,कोमल ,गीली ,
मगर जिद्दी कवितायें |
जो बटोर कर पूरी ओस
लिख देना चाहती हैं
चांदनी के ऊपर हवाओं का मन ,
जो बता देना चाहती है
तन्हा खड़े पर्वत का दर्द
जश्न में डूबे मैदान को |
जो दिखा देना चाहती है
धरती के लावे का सुर्ख रंग
इस नीले आकाश को , और ….
जो सुनाना चाहती है
निर्मोही समन्दर को
थकी हुई नदियों का यात्रा वृतांत |
उगने ही लगती हैं कवितायें
प्रतिकूल होने पर भी
हठी मौसम के |
दबा कर रखने से बीज को
हमेशा बढ़ती है
अंकुरण की दीवानगी …!
- संध्या सिंह
जन्म: २० जुलाई
स्थान: देवबंद जिला सहारनपुर , उत्तर प्रदेश
प्रारंभिक शिक्षा: गाँव की पाठशाला में
शिक्षा: स्नातक ( विज्ञान ) , मेरठ विश्वविद्यालय
सम्प्रति: कुछ पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन , एक काव्य संग्रह और एक गीत संग्रह प्रकाशाधीन
इसके अतिरिक्त स्वतन्त्र लेखन , हिन्दी के प्रचार – प्रसार से जुडी साहित्यिक गति विधियों में सहभागिता
पता: इंदिरा नगर , लखनऊ , भारत