सेल्फी ! एक एहसास

       सेल्फी ! ये शब्द अपने आप में शायद बहुत कुछ कहता है । इसको केंद्र में रख कर कितने ही गीत रचे गए हैं और उनकी लोकप्रियता किसे से भी छिपी नहीं है । उनमें से कुछ गीतों नें लोकप्रियता के नए कीर्तिमान स्थापित कर दिये थे । वैसे भी कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है और सेल्फी आज के हमारे रहन-सहन का हिस्सा बन चुकी है या कहा जा सकता है कि हमने सेल्फ़ी संस्कृति को आत्मसात कर लिया है। यह सारे गीत उसी का प्रमाण है । सेल्फी के प्रति बढ़ता लगाव उम्र की सीमाओं को पार कर चुका है । सिर्फ़ युवा पीढ़ी ही नहीं हमारे बुजुर्ग भी अपनी सेल्फी लेते हुए नज़र आ रहे हैं । नए-नए मोबाइल फोन भी केवल अपनी एक विशेषता का विज्ञापन कर रहे हैं और वो है सेल्फी । ये अचानक ऐसा क्या हो गया है ? वैसे अभी कुछ दिन पहले मेरे मोबाइल फोन पर एक छोटा सा संदेश आया था जिसमे लिखा था कि सेल्फी कि बढ़ती लोकप्रियता यह दर्शाती है कि अब हमारे आस-पास हमारी तस्वीर लेने वाला कोई नहीं बचा है या फिर हम अपने आस-पास वालों से बहुत ज्यादा कट चुके हैं।

       पहले हम एक संयुक्त परिवार में रहते थे । साधन सीमित थे फिर भी खुशियाँ अपार थीं। परिवार के सदस्य एक दूसरे के साथ अपने सुख और दुख के पल व्यतीत करते थे । घर में एक फोन होता था । घर का ये फोन घर का हिस्सा बन जाता था । इसी तरह हर घर में एक 36 रील वाला कैमरा होता था । इस कैमरे का उपयोग पारिवारिक समारोहों में और शुभ अवसरों पर होता था। आज समय बदल चुका है । हमारी प्राथमिकताएँ बदल चुकी हैं । ये सारी बातें आज एक अतीत का हिस्सा लगने लगी हैं । परिवार अब संयुक्त नहीं रह गए हैं । परिवार के सदस्यों कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता सर्वोपरि हो गई है । इसलिए स्वाभाविक है कि सबके अपने-अपने फोन हो गए हैं । सबकी अपनी-अपनी खुशियाँ और उन खुशियों के पलों को कैद करने के लिए सबके पास अपने कैमरे हो गए हैं।

       परिवर्तन संसार का नियम है और हमें खुले दिल से इसे स्वीकार करना चाहिए । पहले हम एक दूसरे से अपने मन की बातें साझा कर लेते थे और दिल का बोझ हल्का हो जाता था । और आज खुशियाँ भी हमारी अपनी और गम भी हमारे अपने । इसी वजह से कि गम प्रभावी ना हो जाये, हम हर पल खुशियाँ तलाश करते हैं । उन पलों में जीने की कोशिश करते हैं । इस भय से की वो खुशियों के पल कहीं खो न जाएँ हम उन पलों को समेट कर रखना चाहते हैं । सेल्फी कुछ और नहीं ये समेटे हुए कुछ पल ही हैं जो आने वाले कल में हमें जीवन को जीने की प्रेरणा देंगे और जब हम अकेले पन से घबरा कर कहीं भाग रहे होंगे तो ये हमें फिर से जीवन को जीने का साहस देंगे। आज यह अवश्य लग रहा है की हम पलों को जीने की बजाय उन्हे कैद कर रहे हैं पर सत्य तो यह है की हम आने वाले पलों के लिए खुशियों का खजाना ढूंढ रहे हैं ।

 

 

- सिद्धार्थ सिन्हा

भारत सरकार के स्वामित्व वाले “ आइ. डी. बी. आइ. बैंक ”  में सहायक महा प्रबन्धक के पद पर कार्यरत हैं। इन्होने सांख्यिकी एवं प्रबंध शास्त्र में स्नातकोत्तर किया है । सिद्धार्थ सिन्हा बनारस के रहने वाले हैं और वर्तमान में मुंबई में कार्यरत हैं।

इन्होने आइ. डी. बी. आइ. बैंक की हिन्दी प्रतियोगिताओं में विभिन्न पुरस्कार जीते हैं और ये बचपन में सुमन सौरभ पत्रिका और दैनिक जागरण समाचार पत्र में भी कहानियाँ और लेख लिख चुके हैं । 

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