विश्वासघात

एक दूसरे की मौजूदगी को
नजरअंदाज करते
आमने सामने बैठे हैं दोनों
निःशब्द
पटरियों पर तेज रफ्तार दौड़ती
रेलगाड़ी की आवाज  में
कहीं गुम होती
बढ़ती तेज सांसों की आवाज
अजीब सी बेचैनी है मेरे अंदर
खिड़की खोलकर
बाहर देखता हूं
अंदर आते गर्म हवा के झोंके
दूर-दूर तक
वीरान ही नजर आता है
रोक लेता हूं
ढुलकने से आंसुओं की बूंदें
संभालकर रखा है जिन्हें
अरसे से अपनी आंखों में
अपने अंदर झांकता हूं
घबराकर बंद कर देता हूं खिड़की
नहीं कराना चाहता उसे
अहसास
अपने अंदर और बाहर के
खालीपन का
आज भी मौजूद है
दोनों के बीच
टूटे रिश्ते की अदृश्य डोर
जिसके एक सिरे पर है
विश्वास
और दूसरे सिरे पर है
विश्वासघात……
- सुधीर केवलिया
पता :          बीकानेर.  (राजस्थान)
शिक्षा :        एम ए (अंग्रेजी साहित्य)
सम्प्रति :      प्राइवेट सेक्टर में एग्जेक्यूटिव
साहित्य :      विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में मेरी रचनाएं  ( कहानी/कविता/ व्यंग्य/  लघुकथा ) समय -समय पर   प्रकाशित
सम्मान :     जिला प्रशासन बीकानेर, मेयर नगर
निगम बीकानेर और अन्य गैर सरकारी
संस्थानों द्वारा हिन्दी साहित्य में योगदान
के लिए सम्मानित।
आशा है कि आप मेरी रचना प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान कर मुझे अनुग्रहित करेंगे।

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