रातभर आकाश धुना जाता रहा और बर्फ के फूले फूले नर्म फाहे पेड़ पौधों की निर्वस्त्र शिराओं में अटकते रहे। सुबह तक ऐसा लगने लगा कि बर्फ की रुई से ही बने हों। कुछ छोटे छोटे पादप पूरी तरह ओझल हो रहे। सुबह का रंग नारंगी था—— सड़क की नारंगी रौशनी से रंगा। धरती और आसमान एक सार। बर्फ ही बर्फ। अभी सूरज के उगने में तीन घंटे बाकी थे। ना भी दिखे आज तो आश्चर्य नहीं। पाँच बजे थे। चिड़ियाँ भी अभी सो रही थीं। नीचे दरवाज़े में कुछ खडका।
मैंने खिड़की का पर्दा हटाया तो सामने बगीचे की पक्की पगडण्डी पर पडी बर्फ की गदेली परत पर प्रैम के पहियों के निशान दिखे। लगता है आज भी वह अखबारवाला लड़का नहीं आया होगा और वह दुकानवाली अपने बच्चे को प्रैम में डालकर अखबार बांटने निकली होगी। मैं नीचे उतरी तो दरवाज़े के लैटरबॉक्स में ताज़ा अखबार फंसा हुआ नज़र आया। उसके साथ ही ठंडी हवा फर फर अंदर घुसकर घर का आरामदेह तापमान बिगाड़ रही थी। मैंने अखबार अंदर खींचा तो कुछेक कागज़ बाहर ही गिर गए। यूं तो यह फ़ालतू इश्तेहार ही होंगे मगर बर्फ में गलकर देहरी गन्दी करेंगे। अतः मैंने झटपट दरवाजा खोला उन्हें उठाने के लिए। देखा तो सामने बर्फ के गदेलन पर नाज़ुक सा गुलाबी टोपा नज़र आया। समझ लिया की उसकी प्रैम में एक नन्हीं सी बेटी है। ओफ़ !! इतनी सुबह सुबह !! अभी ज्यादा दूर नहीं गयी होगी। पकड़ा ही दूँ वरना कौन इतनी दूर उसकी दूकान में देने जाएगा इस मौसम में।
मैं टोपा उठाकर लपकी। वह कुछ दूर पर ही नज़र आ गई।
” हे ! हे यूं !! आई थिंक यू ड्रॉप्ड दिस । ”
वह मुड़ी।
गुलाबी गालों को घेरे हुए छोटे छोटे पर्म किये हुए बालोंवाली सुन्दर तन्वंगी युवती ! मुस्कुराकर थैंक यू कहती वह टोपा लेने मुझतक आ पहुंची। पास से देखने पर वह मुझे अंग्रेज नहीं लगी। तुर्की या यूरोपियन होगी। पर मुझे अवाक करती वह हिंदी में बोली अरे आपने इतनी तकलीफ क्यों की ?मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। मैं चूंकि उसकी ग्राहक थी उसे मेरा नाम पता था। अतः मैंने ही उसका नाम पूछा। वह बोली ” विम्मी चड्ढा ! ”
परिचय की कड़ियाँ आगे जोड़ते हुए और कई प्रश्न दोनों ओर से छलक पड़े। वह परमानू से ,मैं चंडीगढ़ से। एक ही प्रदेश के। मेरी दो बेटियां ,ज्योति और शिखा। उसकी एक बेटी ,नेहा। एक साथ हम आगे बढे और गले मिले। बस तभी से हमारी दोस्ती है। उसको नहीं और ,मुझको नहीं ठौर।
कुछ हफ्ते पहले ही महेश चड्ढा उर्फ़ मेशी ने हमारे मोहल्ले की एकमात्र अखबार की दूकान खरीद ली। उसके ऊपर दो कमरों का फ़्लैट है. उसी में अपनी पत्नी और बच्ची के साथ उसने अपनी गृहस्थी जमा ली फिलहाल। यहां इस देश में आये हुए उन्हें पांच वर्ष हो गए थे। महेश बस का ड्राइवर था मगर कारों की मरम्मत करने का उसे अच्छा ज्ञान था अतः पुरानी छकड़ा गाड़ियां खरीद लेता और उनकी मरम्मत करके बेच लेता। इस तरह उसने थोड़ी बहुत संपत्ति जमा कर ली और अपनी दूकान खरीद ली। दोनों मेहनती थे। शुरू शुरू में लोग पुराने मालिक विलियम को पूछते आते थे मगर जल्दी ही महेश ने अपनी लच्छेदार बातों से ग्राहकों का मन जीत लिया। अंग्रेजी में वह गड़बड़ा जाता था। सुनी सुनाई पकड़ ली थी अतः कुछ शब्द अमेरिकी उच्चारण से। कुछ भारतीय पंजाबी टोन में व कुछ पक्की अंग्रेजी में जब वह बोलता तो छोकरे उसकी नक़ल उतारते नहीं अघाते। पर वह भी उसी अंदाज़ में एक आध गाली टिका कर हंस देता। कभी बुरा नहीं मानता था। विम्मी को तो चार छह काम चलाऊ वाक्य ही आते थे। मगर टूटी फूटी जोड़ तोड़ कर दूकान तो चल निकली।
इन्हीं छोकरों को सप्ताहांत में जेब खर्च के लिए नौकरी की जरूरत होती। मेशी इन्हें पटाये रखता। कभी चोकोलेट पकड़ा देता या काउंटर के पीछे बैठकर यौन पत्रिकाएं उलटने पलटने देता। कभी उनकी साइकिल ठीक कर देता या उनकी माँ की मोटर। अगर किसी ने पैसे दे दिए तो वह वाह वाह समझ लेता ,यदि न दिए तो चुप मार जाता। पड़ोसी उसके मुरीद बनते गए। इसके साथ ही उसका व्यापार बढ़ने लगा।
विम्मी के भाग्य से हमारे देखते देखते ही दूकान के सामनेवाली गली में उन्होंने चार बैडरूम का मकान भी खरीद लिया और दूकान के ऊपर फ़्लैट को किरायेदार को दे दिया। घर गृहस्थी , बच्चे की देखभाल और दुकान की खरीद फरोख्त के बीच दोनों ने अपना समय बाँट रखा था। गर्मी हो सर्दी हो ,बर्फ हो या पानी , सुबह चार बजे अखबार की कंपनियों के बण्डल पहुँच जाते। उन्हें सहेजकर गली के हिसाब से बांटने का काम लड़कों का होता था। उनके आने से पहले ही मेशी घरों की लिस्टें और गिनकर अखबारों के बण्डल तैयार रखता ताकि सूरज उगने के साथ साथ गाहक को अखबार मिल जाए। ट्रैन से या बस से काम पर जानेवाले स्कूलों के टीचर आदि सुबह पांच बजे से उठ जाते हैं। लड़कों को उनके बण्डल पकड़ाकर मेशी पहली ट्रैन से जानेवालों की ग्राहकी निपटाता। घंटे डेढ़ घंटे यही क्रम चलता फिर गृहणियों और माओं का तांता लग जाता। उनकी मांगें नित्य नई होतीं और महेश किसी को निराश नहीं करता। होते होते यह दूकान मिनी सुपरमार्केट बन गयी।
स्कूली बच्चों की लाइन कम होते होते विम्मी आकर उसे छुट्टी दे देती और वह घर जाकर नहाता धोता। ग्यारह बजे वापिस आता तो विम्मी घर जाती और खाना आदि बनाती। पहले मेशी काउंटर के पीछे बैठकर खाना खाता फिर विम्मी। जब नेहा बेबी थी हम उसे बड़े से गत्ते के डिब्बे में सोया हुआ देखते मगर अब तो वह स्कूल जाने लगी है। विम्मी को महेश ने कार चलाना भी सिखा दिया जिससे काफी सुविधा हो गयी।
विम्मी ने बताया कि महेश की बड़ी बहन मेनचेस्टर में रहती है। वह आती तो विम्मी पैर छूकर स्वागत करती मगर बहनजी का एक ही उद्देश्य होता , भाई से जितना बटोर सको उतना अच्छा। विम्मी कहती बहन बेटी का दिया बरकत लाता है।
बड़ा घर लेकर मेशी ने अपने पूरे परिवार को अपने खर्चे पर केनिया से बुलवाया। माँ बाप ,बड़ा भाईसुरेश और उसकी पत्नी नीलू ,और उनके दोनों पुत्र प्राण और ज्ञान। इतने दिन बाद सब एक छत के निचे एकत्र हुए तो सबकी हंसी ख़ुशी का पारावार नहीं रहा।
हमारी दोस्ती गहरी होती गयी। मेरी बेटियों को नेहा के साथ खेलना दिनचर्या का अनिवार्य अंग हो गया। समय के गह्वर में उम्र डूबती जाती है। दो तीन वर्ष के बाद ही मेशी के माँ बाप चल बसे । अंतिम दर्शन के लिए जब वह अकेला केनिया गया तो विम्मी और नेहा की देखभाल हमने ही की साथ ही मेरे पति विजय ने दूकान में भी हाथ बंटाया। नरेश ने अपने भाई सुरेश से बंटवारे का कोई प्रश्न नहीं उठाया। उनकी वसीयत आदि की जिम्मेदारी उसी पर छोड़ दी। पर जैसा कि अक्सर होता है , विम्मी ने बताया ,नीलू ने सब कुछ खुद ही संभाल लिया। मेशी को कोई लालच नहीं था। वह अपनी मेहनत से राजा था।
जब उसके के माँ बाप आए थे तो उन्होंने अपनी निशानी और सगुन के तौर पर विम्मी और नेहा को अपने कुछ गहने दिए थे। जिसपर सुरेश और नीलू का मुंह बन गया था । वैसे भी विम्मी की सफलता से उन्हें ईर्ष्या होने लगी थी। नीलू का मायका केनिया में उनके घर के पास ही था। वह लोग साधू संतों पर अंध विशवास करते थे। अपने गुरु को बहुत मान देते थे जो उत्तराखंड भारत में बसते थे। विम्मी और मेशी को यह सब बेमानी लगता था। मैं समझाती अरे तुझे क्या , कोई कुछ ही माने।
सब होते हुए भी विम्मी खुश नहीं रह पति थी। बस उसे एक ही गम खाए जाता था की उसके लड़का नहीं हो रहा।कहती कि एक बेटी ,ब्याह कर पराये घर चली जाएगी। वह अकेली रह जाएगी। मेरे समझाने पर रोने लगती। न सही लड़का दूसरी लड़की ही हो जाए। नेहा का कोई तो हो। जाने किस कारन उसके मन में वहम ने घर कर लिया था कि नीलू ने उसपर कोई जादू टोना कर दिया है जिस से उसकी कोख सूख गयी और वह बच्चा नहीं पैदा कर सक रही। विम्मी की मानसिकता गाँव के घरेलू जीवन से अधिक प्रभावित है। समझाने बुझाने का असर अधिक देर तक नहीं टिक पाता। वह मुझे बताती , ” खुद माताजी ने उसे मेरे पीछे दाने फेंकते देखा। ”
मैं कहती , ” अरे विम्मी , दुनिया भर में सासों की आदत होती है दो बहुओं को लड़वाने की। फूट डालकर स्वयं शासन करती हैं। इसलिए तू इन बातों पर ध्यान न दे। इन बातों से शरीर के अंदर कुछ नहीं बदल सकता। जा किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा और इलाज कर। ”
विम्मी रूठकर कहती , ” अच्छा तू नहीं मानती तो न सही। जब देख लेगी तब तुझे विश्वास आएगा। ”
फिर एक दिन —–
पिछले अक्टूबर की बात है। दिवाली का त्यौहार हफ्ते के बीच में आन पड़ा। मैंने दो दिन की छुट्टी ले ली। पहले दिन काली चौदस को जमकर सफाई की। अगले दिन सुबह से मिठाई आदि बनानी थी। मैं जल्दी जल्दी नहा धोकर रसोई में व्यस्त हो गयी। इधर चाशनी चूल्हे पर चढ़ाई नहीं कि विम्मी का फोन आ गया। बुरी तरह हड़की हुई थी। अभी सुबह का साढ़े सात ही बजा था। ” अभी आ प्रीतो ! तू अभी आ जा। ”
” पर हुआ क्या है ? मेशी और नेहा तो ठीक हैं न ? ”
” हाँ वह दोनों ठीक हैं मगर तू अभी आ। ” कहते कहते वह रो पडी।
मैंने विजय को जगाया। नाईट सूट के पैजामे पर ही पैंट चढ़ा कर , जल्दी उठा दिए जाने पर भन्नाते हुए नीचे उतरे और हम गाड़ी में बैठकर चल दिए। वह दोनों अपने घर के बाहर चुपचाप सड़क पर ,रात के ही कपड़ों में खड़े हमारा इंतजार कर रहे थे। उनके चेहरे पर बारह बजे थे। गाड़ी रुकते ही मेशी ने लपक कर दरवाज़ा खोला। मैंने राम राम मनाया सोंचा कहीं चोरी न हो गयी हो। फाटक के अंदर कदम रखा तो देखते ही मुझे उबकाई आ गयी।
कोई एक मुर्गे को ताज़ा - ताजा मारकर ऐन दरवाज़े की चौखट पर डाल गया था। मुर्गे के सारे पंख बिखरे पड़े थे। उसका मांसल पिंड उधेड़कर इस तरह से उल्टा गया था कि उसकी छाती की विशबोन एकदम त्रिशूल की तरह हवा में सीधी खड़ी थी और दरवाज़े की ओर इंगित कर रही थी। उसकी आँखें – फटी मुंडी वहीँ पास में पडी थी और उसके दोनों पंजे उखाड़कर अलग रख दिए गए थे। मुर्गे के चारों तरफ साबुत काले उड़द बिछे थे। इसके अलावा काला कपड़ा, साबुत लाल मिर्चें , सिन्दूर आदि इस तरह से बिखेरा गया था कि घर से निकलनेवाला बिना उनपर पाँव रखे बाहर ही न आ सके।
बचपन की कहानियों में दादी नानी से जादू टोने के किस्से सुने थे ,पर देखा पहली बार। वह भी लंदन आ कर। शायद कोई दबा हुआ वहां बोल पड़ा। —-
” तूने या मेशी ने इसे लांघा तो नहीं ? ”
” नहीं हम पडोसी की फेंस ( बाड़ ) के दरवाज़े से पिछले रास्ते से आये हैं। नेहा अभी सो रही है। दुकान लड़कों के हवाले छोड़ी है। ”
” आज अमावस है। टोना करनेवाले ने काली चौदस का दिन चुना। तू फ़िक्र न कर। जो बुरा करे अपनी झोली में डाले। राम का नाम लेकर इसे समेटकर बहते पानी में फेंक दो। ”
इसके बाद मैंने ‘ सर्व मंगल मांगल्ये ‘—- का मन्त्र बोला।
बेचारे मेशी ने ही झाड़ू लेकर सफाई की। विजय उसको पांच मील दूर वंडल नदी पर ले गए। रास्ते में मेशी के आंसू बह निकले।
” क्यों हमसे दुश्मनी है किसी की ? यहां सब कहते पिटे हैं फिर भी आपस में ईर्ष्या द्वेष। ”
” क्या तुमको शक है किसी पर ?” विजय ने पूछा।
” हमारे आस पास सिर्फ अंग्रेज रहते हैं। वह क्या जाने यह सब उड़द -सिन्दूर ! कालों को सुना है वूडू करते हैं मगर यहां तो कोई काला बन्दा नहीं रहता और हमारे भारतीय भी इक्के दुक्के हैं अच्छे पढ़े लिखे परिवार। हम उनको जानते भी नहीं। ”
” कौन हो सकता है ? ”
” पता नहीं यार ! मूड ही खराब हो गया त्यौहार वाले दिन। ”
उधर मैं विम्मी को दिलासा देती रही। विम्मी भी किसी पर दोष लगाने से हिचक रही थी। उसका इस देश में कोई भी इतना करीबी नहीं था जो जलन खाता। ननद बड़ी थी दूसरे शहर में मगर स्वप्न में भी वह अपने भाई का बुरा नहीं चाहेगी। ससुराल वाले सब केनिया में थे। मायके वाले भारत में। सुबह का झटका हताशा बनकर आँखों से बहने लगा। लाख बड़ी हो जाए ,हर स्त्री मन की तहों में दबी वही अबोध सुकन्या होती है जो विवाह के समय माता पिता का सुरक्षित आँगन छोड़ती है। — वही नदी की गीली चिकने मिटटी जो संसार के चाक पर चढ़ाई जाती है और भावी परिस्तिथियों के हाथों थपक – पीटकर गाढ़ी जाती है , अनगिनत स्वरूपों में , अनगिनत उपयोगों के लिए।
मेरी गोद में सर रखकर विम्मी सुबक रही थी।
” मेरा कोई नहीं है प्रीतो। माँ बाप बचपन में ही उठ गए। तीनो भाई अपनी ही गृहस्थी चला लें तो बहुत है। बहनें मेरी तरह अपनी ही परेशानियों से दबी हुई। साल में कोई चिट्ठी पटरी आ जाये तो गनीमत समझो। बस बड़ी बहन , निम्मी जो केन्या में रहती हैं कभी कभी फोन कर लेती हैं। वही एक सहारा हैं मेरा। ”
मैंने उसको पानी पिलाया। ” दिवाली का दिन है। त्यौहार वाले दिन रोते नहीं। ”
कुछ सोंचकर विम्मी बोली ,” मेरी जेठानी बहुत खार खाती है मुझसे। माताजी ने नेहा को पहली बार देखा था जब वह यहां आईं थीं। मेरा नया घर क्या मैं भी उनके लिए नई थी। सब बातों के शगुन का उपहार दिया उन्होंने मुझको। तिस पर नीलू ने बहुत फसाद किया। सुरेश हमेशा जताता है कि उसने माँ और बाप को रखा। कितना कमीना है। खुद उनके घर में पसर के रह रहा है। उनके जाने के बाद सारी गृहस्थी खुद समेट ली। अब केन्या का बुरा हाल है तो खुद इधर आना चाहती है। पिछले दिनों हमें चिट्ठी डाली थी कि उसके छोटे बेटे को हम गोद ले लें। क्योंकि हमारे कोई भी पुत्र नहीं है। वह ज्ञान बीस इकीस साल का पूरा मर्द हैं। ”
” बड़ी आई ! तेरी नेहा क्या बेटों से काम है ? ” उसकी सुबकियों से हिलती देह को अंक में भरकर मैंने उसे दिलासा दी।
” नेहा के बाद मुझे कभी कुछ रहा ही नहीं। कभी सुना है कि इतनी कम उम्र में बच्चे बंद हो जाएँ ? ” विम्मी घूम फिरकर अपना चकिया राग आलापने लगी। मेशी और विजय वापिस आ गए थे। नाली लगा कर पूरा चौबारा धोया। नाश्ते के बाद हमने उनको शाम को दिवाली पूजन के लिए अपने ही घर आमंत्रित किया। विम्मी ग़मगीन स्वर में बोली कि वह द्वार पर सजाने के लिए नई बिजली की लड़ियाँ लाई थी। अब अगर लगाएगी तो उसके घर को नज़र लग जाएगी। अतः मैंने एक छोटी पेपर प्लेट ली ,काले मार्कर पेन से उसको रँगा। टिपेक्स से उसमें बड़ी बड़ी आँखे ,नाक मुंह आदि बनाये। लाल रंग की जिव्हा बनाकर काली माता का भयंकर रूप बनाया। उसे सेलोटेप से बाहर दरवाज़े के बिलकुल बीचों बीच टंगवा दिया।
” नज़र लगनेवाले तुझको माता खायेगी। ” सुनकर अनायास ही सब हँस पड़े। वातावरण कुछ हल्का पड़ा। विम्मी मेरे गले से आ लिपटी।
दीवाली अच्छी गुज़री। अगले शनिवार को हमने हनुमान यज्ञ किया। एक सौ आठ बार चालीसा पढ़ा। पूजन आरती करके चरणामृत घर के अंदर बाहर छिड़का। तभी पड़ोसी एल्फ्रेड अपने चर्च के पादरी को लेकर आ गया। उसने ईसाई विश्वासों के अनुसार घर से दुष्टात्मा [ ईविल स्पिरिट ] का निष्कासन किया। पादरी जी ने काले लोहे के क्रॉस वाली रोज़री [सुमरनी माला ] फेर फेर कर सारे कमरों में बाइबिल के शब्द बोल बोल कर गश्त लगाई।
बाग़ बगीचा ,अगली पिछली चौखट ,दरवाज़ा आदि सब होली वाटर से सींचा। तत्पश्चात विम्मी नेहा और मेशी को ब्लेस्स किया [ ईसाई आशीर्वाद दिया ]
नेहा इस पुथल से बहुत विचलित हो गयी। नौ वर्ष की उम्र में यह नितांत अनजान गतिविधि उसको भयभीत कर गयी। विम्मी को भी अपने अंध विश्वासों ने चैन नहीं लेने दिया। अक्सर उसको सिरदर्द उठने लगा। ढूंढ ढांढ कर किसी ने एक शास्त्री जी का पता बताया जो शांति प्रदान करने के लिए मशहूर थे। हमारे अंदर पदार्पण करते ही वह विम्मी की ओर लक्ष्य करके बोले कि उसे उसके पति के परिवार की ओर से आक्रान्त किया गया है। मेशी ने मुझे घूरा। शायद उसने सोंचा कि मैंने उन्हें पहले से बता दिया होगा। शास्त्री जी ताड़ गए। कहने लगे कि विम्मी आभामंडल अक्षुण्ण है जबकि मेशी का आभामंडल किसी अशुभ छाया से ग्रसित नज़र आया ,इसलिए उनहोंने समझ लिया कि मुसीबत मेशी के परिवार से आई होगी। उन्होंने निकट भविष्य में और अधिक क्लेश की संभावना बताई जो इसी व्यक्ति द्वारा आएगी उनके जीवन में। विम्मी सुनकर फिर से रोने लगी। वह कि घबराने की कोई बात नहीं है। मानसिक क्लेश होगा मगर कुछ अनिष्ट नहीं होगा। ग्यारह पौंड चढ़ावा उनकी चौंकी पर रखकर भारी मन से वापिस आये।
दिसंबर आन खड़ा हुआ। समूचे इंग्लैंड पर क्रिसमस की आत्मीयता का नूर बरसने लगा। सृष्टि बर्फ की अपेक्षा में अपने फूल-पत्ते छुपा कर रख आई थी। वृक्षों के हाड ऐसे लगते थे कि जैसे साफ़ नीले आकाश में चमकते सितारों को धरती के रंगा रंगी किस्से प्रसारित करने के लिए हजारों ऐंटिना खड़े हों। शाम के धुंधले अँधेरे और चरों ओर रोशनी की जगमगाती लड़ियाँ ! ढँके लिपटे मानव शरीर। भरी पुरी दुकानें। चहकते बाजार। ललचाते ,जिदियाते बालक। खीझती माएँ। और इन सबको अपनी नर्म गर्म चादर में लपेटे क्रिसमस का उल्लास ! रात देर तक धड़कता दौड़ता लंदन शहर ! चारों तरफ सजावट ही सजावट। कितना खर्च, कितना परिश्रम , कितनी ख्वाहिशें ,कितनी फरमाइशें।
विम्मी और मेशी को डैम मारने की फुर्सत नहीं थी। फोन करो तो –” क्यू लगी है ! बाद में बात करती हूँ। ” पर नहीं। कई दिनों तक कोई खबर नहीं। क्रिसमस की छुट्टियां आ गईं। बच्चों के घर पर होने से काम ही काम। उनकी देखभाल के लिए बारी बारी से हम छुट्टी ले पाते। हर समय की धामा चौकड़ी। फुर्सत ही कहाँ थी ? ना उसे न मुझे।
क्रिसमस से दो दिन पहले फोन आ गया विम्मी का। उसी तरह असंयत स्वर में बोली , ” देखा न प्रीतो ! मुझे तो पहले से ही लग रहा था कि मुसीबत यहीं कहीं आस पास है। ” विम्मी का स्वर ऐसे काँप रहा था कि जैसे कोई डर उसमे समा गया हो।
” क्यों अब क्या हो गया ? ”
” वही जो मैंने सोंचा था। मेशी के भाई के लड़के ज्ञान का फोन आया था यहीं ऑक्सफ़ोर्ड से। सितम्बर से यहाँ पढ़ने आया हुआ है। देखा कैसे सात पर्दों में रखती है अपनी बात ये नीलू ! हमें बताया तक नहीं। भारत से फिजिक्स में एमएससी करने के बाद यहां न्युक्लेअर फिजिक्स पढ़ने आया है। ”
” यह तो अच्छी बात है। बेटा होनहार है। ”
” तू समझती क्यों नहीं ? सांप का सपूला भी डसता है। ”
” तू कहना क्या चाहती है ? यही न कि नीलू ने ज्ञान को भेजा तेरे घर टोना रखने को। छोड़ भी ! इतना पढ़ा लिखा लड़का। — अब बस भी कर। कुछ और सोंच। बेकार की सर खपाई मत किया कर। ”
” मैं तुझसे सच कह रही हूँ प्रीतो। तू नीलू को नहीं जानती। उसकी अपने परिवार पर बहुत पकड़ है। उसके घर उसके मायके के गुरु जी का ही कहना मानते हैं सब। बिलकुल अंधेवार। वह बहुत बड़ा तांत्रिक है। ”
” कहा न दिमाग मत चाट ! धेले की मिठाई भी न तेरे घर लाने को और बीसियों पौंड की टिकट खरचेगा तेरे घर टोना फेंकने के लिए ? जरा तर्क से काम ले। नामुमकिन ! ठन्डे दिल से सोंच ! पैसा खर्चना इन जैसों के लिए आसान नहीं होता। ”
” तो फिर शास्त्री जी ने कैसे जान लिया था ? ” विम्मी झल्लाई।
” क्या जान लिया था ? नाम पता बतलाया था क्या ? ये तो कोई भी अटकल लगा लेगा कि भाई भाई में जलनखोरी होती ही है। बात जितनी सजे उतनी किया कर। बेकार खेंचने से क्या फायदा। मुफ्त का सर दर्द मोल लेना। ”
बहुत समझा बुझाकर मैंने उसे शांत किया। यह भी कहा कि बात दिवाली की है और दिवाली पर कोई छुट्टी नहीं मिलती कॉलेज से। आये न आये ,केवल क्रिसमस पर ही वह आ सकता है। अतः उसे मिलने आने देने में कोई हर्ज नहीं है।
ज्ञान मेशी चाचा से मिलने आया तो विम्मी ने उसके लिए पहले से ही एक कमरा तैयार करके रखा। मगर वह विम्मी के घर नहीं ठहरा। कारण उसके मामा आदि केन्या से घर गृहस्थी समेटकर ,बिज़नेस आदि बेचकर यहीं उनके घर के पास आन बसे हैं। मुश्किल से डेढ़ या दो मील पर ही उनका घर था। यह सब पिछले छह महीने से चल रहा था। अब चूँकि मायका परिवार यहीं आ बसा है तो नीलू और सुरेश का भी केन्या में पड़े रहना मायने नहीं रखता। इसलिए सुरेश ने घर बेच दिया है और वे लोग इधर ही आकर बस जाने वाले हैं। इसी विषय में सलाह मशविरा करने वह चाचा के पास आया है।
मेशी सुनकर हक्का बक्का रह गया। इतनी जल्दी यह सब कैसे हुआ ? ज्ञान ने बताया कि जल्दी नहीं ! यह योजना तो पिछले दो साल से बन रही थी। अब जाकर परवान चढ़ी है। मेशी को जैसे शेर दिख गया हो ! केन्या में उसका घर ,उसका कमरा , दीवार वाली आलमारी ,अल्मारी में बंद उसकी यादें ! पहले प्यार की उसकी निशानियां ,उसके खत ,तस्वीरें ,उसके रिकॉर्ड , उसका बाजा ,उसके उपहार ? सब कहाँ फेंक दिए गए बिना उससे पूछे ? ज्ञान को क्या पता ? वह तो नाक सिंनकने वाला आधा तन ढंके घूमनेवाला बालक था तब। सब फना कर दिया और उसको बताया तक नहीं। विम्मी अपनी ससुराल के उस घर में कभी नहीं रही मगर अपने पति के आंसू उससे छुपे न रहे। ज्ञान को झिड़ककर बोली ,ऐसा कैसे कर सकते हैं सुरेश भाई। मेशी चाचा का भी तो था वह घर ? उनका जानने का भी हक़ नहीं समझा तुम सबने और अब उन्हीं से मदद माँगने चले आये मुंह उठा के ? एक बार पूछ तो लेते ? तुम्हारे संग ऐसा कोई करे तो तुमको कैसा लगेगा ?
ज्ञान शर्मिन्दा हो गया। बीस बाईस की कच्ची उम्र ! सब सच्चाई बक गया।
” दरअसल आंटी मेरे मामा लोग बहुत मुसीबत में पड़ गए। केन्या की नई सरकार ने सब पुराने व्यापारियों की छानबीन की। पुलिस पीछे लगा दी। झूठे तकाज़े बनाकर उनको पकड़ लिया। एक तरह से सब कुछ ज़ब्त कर लेने की साजिश ही समझ लीजिये। जो कुछ निकाल पाए वही लेकर इधर आ गए हैं। पापा को भी सरकार ने बीच में ही लबेड़ लिया। हमारा भी वहां रहना खतरे से खाली नहीं था। इसलिए पापा ने लंदन के ही डॉक्टर से अस्वस्थता का सर्टिफिकेट बनवाकर इस्तीफा दे दिया। ”
” पर सुरेश को इस तरह चुप रहना चाहिये था क्या ? आजकल तो फोन करना कितना आसान है, ” मेशी गुर्राया।
” अब मैं आपको कैसे समझाऊँ।”
” सुरेश और नीलू तो ब्रिटिशराज काल में वहां पैदा हुए थे मगर तुम दोनों तो केन्या के नागरिक हो। १८ वर्ष से ऊपर उम्र है। माँ बाप से आज़ाद हो। बिना ब्रिटिश वीज़ा के कैसे यहां रह सकोगे ? ”
” इसीलिए तो मैं आपके पास आया हूँ। मुझे स्टूडेंट वीज़ा मिल गया है। और मेरे बड़े भाई प्राण के लिए अगर आप कोई ब्रिटिश पासपोर्ट वाली लड़की ढूंढ देते तो काम बन जाएगा। ”
” माय फुट ! ” मेशी की मुट्ठियां बंध गईं।
उस रात विम्मी ने अपनी बड़ी बहन को फोन किया जो केन्या में उसी शहर में रहती थीं। उन्हीं से पता चला कि नीलू के मायकेवाले मोटर गाड़ियों की चोरी में पकड़े गए थे। लंदन से अनेक दामी कारें चोरी हो रही थीं। बहुत ढूंढने पर भी पुलिस उनका अता पता नहीं लगा पा रही थी। अंततः पुलिस बहुत सतर्क हो गयी। केन्या का राष्ट्र नया नया आज़ाद हुआ था। बड़े सरकारी अफसर एवं नए धनाढ्य व्यापारी नई और ऊंचे दामों वाली गाड़ियों का शौक रखते थे। नई आयात की हुई कारें बाज़ार में अपनी कीमत से तीन गुना हो जाती थीं। अतः एक बड़े जालसाज़ गैंग ने इंग्लैंड और यूरोप से गाड़ियां चुराने का काम शुरू कर दिया। गाड़ी उठाने के बाद वह उसको किसी सुनसान जगह के गेराज में छुपा देते थे। साल छह महीने पुलिस की तहक़ीक़ात चलती। उसके बाद वह गाड़ी के सभी अवयव अलग अलग कर डालते थे। यह काम बेहद सावधानी से किया जाता ताकि कार की असली खूबसूरती बनी रहे। इसके बाद यह टुकड़े अलग अलग डिब्बों में बंद करके केन्या भेज दिए जाते। अफ्रीका और केन्या में मोटर पार्ट्स का व्यापार निर्बाध था। क्योंकि वह अपनी गाड़ियां नहीं बनाते थे। जब सभी पार्ट्स एक जगह पहुँच जाते थे वह उनको जोड़कर पूरी कार बना देते थे और बेच लेते थे। नीलू के मायकेवाले मोटर पार्ट्स के व्यापारी थे और सुरेश लाइसेंस ऑफिस में क्लर्क था। सबकी पूरी मिली भगत थी।
ये करोडो की गाड़ियां जब चोरी हो जातीं तब इनके मालिकों को इंस्युरेन्स से पूरा मुआवज़ा मिल जाता। अतः वह तो नुक्सान नहीं सहते थे मगर इंस्युरेन्स कंपनियां त्राहि त्राहि करने लगीं। किसी भी देश की सरकार का अस्तित्व उसकी आर्थिक क्षमता पर निर्भर होता है। इसलिए बैंकों और साहूकारों से सरकार पंगा नहीं ले सकती। उनकी सुरक्षा सर्वोपरि है। अतः लंदन की पुलिस चुप कैसे बैठती। उन्होंने एक ऐसा अलार्म ईज़ाद किया जो गाड़ी चोरी करने के कुछ दिन बाद बजने लगता। तुरंत नहीं। तुरंत बजनेवाले अलार्म तो पहले ही नाकाम करके चोर गाड़ी को हाथ लगाते थे। यह अलार्म छुपाकर गाड़ियों के इंजन में फिट किये गए। इनको पुलिस के कार्यालयों से जोड़ा गया। जैसे ही यह कामकरना चालू करते ,पुलिस को इनकी भौगोलिक स्थिति का पता चल जाता। इसके बाद जब ऐसा किस्सा हुआ तब पुलिस को एक शिपयार्ड से आवाज़ आई। रेडियो सिग्नल के आधार पर जब पुलिस मौके पर पहुंची तो वह एक विशाल कंटेनर में बंद पाई गयी। जिस कंपनी के नाम यह कंटेनर भेजा जा रहा था वह नीलू के भाईयों की थी। बस यहीं से सारा रैकेट पकड़ा गया। केन्या में इन लोगों को शायद रिश्वत और रसूख पर छोड़ दिया जाता मगर लंदन की पुलिस का दबाव बहुत सख्त था।
सही सबूतों के अभाव में यह लोग कह सुनकर छूट गए और चूँकि इनकी पैदाइश ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी ,इनको वापिस ब्रिटैन में बस जाने का वीसा मिल गया। फिर ही मुकदमे से निपटने और हर्जाना आदि भरने में यह लोग ज़मीन पर आ गए। उनकी मदद करनेवाले अधिकारी भी पदच्युत कर दिए गए जिनमे सुरेश का भी नाम आ गया। अतः उसे भी देश निकाला मिल गया। नीलू बरसों पहले विम्मी के घर ा चुकी थी। इसलिए उसकी इच्छा थी कि इसी जगह घर लिया जाए। उसके भाइयों ने यहीं डेरा डाला।
विम्मी ने अगले दिन यह दास्ताँ हमें सुनाई। ” सारा लंदन खुला पड़ा था ,फिर यहीं क्यों धरना दिया? ”
” ओफ़ ओह विम्मी ! क़ाज़ी जी दुबले क्यों ? शहर के अंदेशे से। तुझे क्या ? तू जा रही है क्या उनके घर ? ” फिर मैंने बात बदलने के लिहाज से पूछा ,” तेरी जेठानी का बड़ा लड़का कैसा है ?”
” एकदम गोरा चिट्टा देखने में ! मगर पूरा गबद्दू !! माँ का चमचा। भारत से बी ए करके आया है। घिसट पिसट कर पास किया। नो गुड फॉर एनीथिंग। ”
जल्दी ही नीलू और सुरेश लंदन आ गए। आते ही उन्होंने प्राण की शादी का ऐलान कर दिया। लंदन में ही पिछले २० वर्ष से बेस , केन्या से विस्थापित होकर आये एक परिवार की लड़की से रिश्ता कर दिया। लड़की यहीं पैदा हुई थी और अभी २० की भी पूरी नहीं हुयी थी। मगर इस शादी से प्राण ब्रिटैन में रहने का हक़दार बन जानेवाला था। शादी के लिए नीलू ने मेशी का ही घर चुना। मेशी न नुकुर करता इसके पहले ही सुरेश ने दलील रखी कि सगे भाई का घर छोड़कर अगर वह अपनी ससुराल से शादी करेगा तो लोग समझेंगे कि भाई भाई में झगड़ा है। इससे घर परिवार की जो साख केन्या में थी वह मिटटी हो जाएगी। विम्मी को कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया गया।
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना ! मेशी ने क्रोयदों से साउथॉल एक कर दिया। तन मन धन से पिल पड़ा। शादी का ताम झाम , नीलू के रिश्तेदारों का आना जाना ,खाना पीना , ढेर सारा काम ! बेचारी नेहा और विम्मी एक कमरे में सिमटकर रह गईं। दूकान तो किसी तरह चलानी ही थी। अतः माँ के संग सारी जिम्मेदारी नेहा ने ओढ़ ली। अचानक वह दस बरस से बीस की हो गयी। कॅश टिल चलाने से लगाकर बैंक में गल्ला जमा करने तक ,सब काम वह सीख गयी। सदा नखरे व ज़िदें करनेवाली लाडली बच्ची अब चुप चाप बीन्स का टिन खोलकर पित्ता ब्रेड के साथ खा लेती। माँ को भी दिन में चार पांच बार चाय बनाकर देती। सुबह अपना टिफिन खुद लगाती और शाम को स्कूल से सीधी दुकान में माँ के पास चली जाती। हालाँकि वहां टीवी था मगर वह गंभीरता से माँ का हाथ बँटाना ज्यादा पसंद करती। कोई दहशत सी थी जैसे अपने पर्यावरण से कट जाने की। नए पुराने लोगों के बीच अविश्वास की असुरक्षा दोनों माँ बेटी की परस्पर निर्भरता को बढाए जा रही थी।
विवाह की तारिख से पंद्रह दिन पहले से नीलू ने हवं उद्यापन आदि करवाने शुरू कर दिए। विम्मी और मेशी ने लंदन में कई शादियां देखी थीं। दो या तीन दिन के उत्सव के बाद सब समाप्त। मगर यहां तो धर्म को लोहे के कंघे से उधेड़ा जा रहा था। जैसे फसल उगने से पहले ज़मीन गोड़ी जा रही हो। दिन- रात पूजा- पाठ शुद्ध -अशुद्ध का विचार ,पंडितों की आवा जाही , भोज आदि सब मेशी परिवार के लिए नितांत अपरिचित था। एक दूसरी ही दुनिया आन बसी थी नेहा और विम्मी के प्यारे घर में जहां कर्म ही धर्म है का बोलबाला था। खाना पीना शुद्ध शाकाहारी —- तड़के मसाले अचार बड़ियाँ पूरी समोसा ! रसोई में नीलू का डंडा तानाशाही। सुरेश उसका नौकर। अक्सर नेहा को मैं अपनी बेटियों के संग खिला पिला लेती।
हफ्ते ,आठ दिन बाद ही मेशी की तौबा बोल गयी। यह धर्म की खिंचाई ,सिंचाई उसकी कामकाजी दुनिया में फिट नहीं बैठ रही थी। खासकर अबूझ अंधविश्वासों का अनवरत सिलसिला। मंत्र पूजा प्रार्थना आदि ठीक है परन्तु यह पच्चीसों विधि निषेध देश काल मौसम और जलवायु के विरुद्ध !यह सब दिन रात की टोका टोकी। मेशी उकता गया था। एक शाम को अकेला ही थका हारा हमारे घर आ गया और सोफे पर निढाल होकर गिर पड़ा।
” प्रीतो। कुछ कड़वा पीला दे ना। ”
” वाह ! ब्याह तेरे घर और डिब्बे खोलूं मैं ! ”
और कोई दिन होता तो मेशी झगड़ने लगता। मगर उसकी चुप्पी और उदासी मुझे रास नहीं आई। मैंने चुपचाप ट्रे में गिलास और बर्फ सजाई और बोतल निकालकर मेज़ पर रख दी। मेशी ऊपर से विजय को बुला लाया। मैंने विम्मी को फोन किया तो वह खिजलाई सी बोली कि नेहा सो गयी है और मैं दूकान का हिसाब किताब संभाल रही हूँ। नहीं आ सकती। मेरा मन हुआ कि मेशी को धर धर के सुनाऊँ की उसकी ढिलाई के कारण दोनों माँ बेटी अपने ही घर में कैदियों का सा जीवन काट रही हैं। मगर उसका उदास मुंह देखकर मुझको तरस आ गया। आखिर तो मेरी शरण आया था ठंडी छाँह माँगने।
विजय ने ड्रिंक बनाई तो पहले दो पेग मेशी पानी की तरह गटक गया। आँखें बंद करके कुछ देर बैठा रहा। मेरा खाना पका रखा था। बेटियों को बेड में भेजकर मैं भी वहीं आ बैठी। मेशी शांत गंभीर स्वर में कहने लगा —–
” बहुत बड़ी गलती कर बैठा हूँ नीलू को घर में घुसा कर। ज़रा शर्म लिहाज नहीं है। दूसरे की चीज़ को आसमान से टपका हुआ समझती है। वह ही छोड़ दो। यह सारा दिन का ढोंग पाखण्ड धर्म के नाम पर जिसका सिर ना पैर ! यह करो वह नहीं। साली ने जाने किस किस्म का हिंदुखाना खोल रखा है। —
” वास्तु शास्त्र की एक किताब ले आई है। कम से कम ब्याह तक तो उसी के अनुसार घर की सभी वस्तुएं रखी जाएंगी। दोनों बेटे और वह मिटटी का माधो सुरेश सारा दिन घर में सामान उलट पुलट करते रहते हैं। पूछते भी नहीं। अपने ही घर में मुझे अपनी ही रखी चीज़ नहीं मिलती। बेटों को खाना खिलाती है तो दरवाज़ा अंदर से बंद कर लेती है। हमारा ही घर और हमीं से नज़र का वहम ! नीचता की हद होती है। विम्मी के बेटा नहीं है ,इसलिए उसकी नज़र इसके लठुम्मन बेटों को लग जायेगी। तभी से विम्मी और नेहा अपने कमरे में ही बनी रहती हैं ,और इसके हाथ का बना नहीं खातीं। ”
मेशी के होंठ गुस्से के मारे विकृत हो गए थे। विजय ने नया पेग पकड़ाते हुए कहा , ” टेक इट ईज़ी यार ! शादी है। ख़ुशी का मौका है। चार दिन की बात है। ”
” माय फुट शादी ! सौदा ही सौदा ! पासपोर्ट की खातिर बेटा बेच दिया समझो। समाधी से कह आये हैं कि यह मकान सास ससुर ने दिया है अतः आधा हमारा है। अब धरम कहाँ गया ? झूठी सेल्समैनी !! अभी आटे दाल का भाव पता चलेगा जब इंग्लैंड की जन्मी पली लड़की इसे ठेंगा दिखाएगी। तब देखेंगे कितने जाप जातां करती है। ”
” ऐसा ही होगा। फ़िक्र मत कर। ठन्डे ठन्डे सब देख तमाशा ! ” विजय भी मूड में आ गए थे।
” परसों कम्बख्त ने मेरी फूल सी नेहा को बीमार डाल दिया। हमें उसको अस्पताल ले जाना पड़ा। ”
” अरे ! हमें क्यों ना बताई यह बात ? ” मैंने उसे बरजा।
कैसे बताता ? वही सब धरम के नाम का ढोंग। कहीं से गोबर के उपले मंगवा बैठी। एक काली लोहे की कड़ाही में उनको सरसों का तेल डालकर सुलगाया। उन पर काले टिल ,काली मिर्चें ,काली राई के दाने ,काला कपड़ा और काली गुग्गल वगैरह डाली। फिर ” ॐ क्लीन क्लीन ” बोलती गयी और यह जादू मंतर का भांडा सारे घर में घुमाया। जब से आई है एक दिन भी ना डस्टिंग की ,ना जले छुड़ाए ,ना कहीं झाड़ू दी और नकभी हूवर पकड़ा। तिस पर रोज़ जताती थी कि घर साफ़ नहीं है। केन्या में तो सुबह शाम एक नौकर सिर्फ झाड़ू पोंछा लगता था। और ये समझती है कि एक सौ आठ बार ॐ क्लीन ,क्लीन ” बोलने से घर क्लीन हो जाएगा भला ? —- तू हंस क्यों रही है प्रीतो ? हर बात को मजाक में उड़ा देती है ! आई ऍम डैम सीरियस मैन !! ”
मैं पेट दबाकर हंस रही थी। जब सांस आई तो कहा ” ॐ हीं क्लीं—— ” काली देवी का मंत्र है। यह सुनकर मेशी की खीझ बढ़ गयी। मेशी के परिवार में माता – पिताजी केवल सुबह छोटी सी पूजा आरती करते थे। गीता या सुखमनी साब का पाठ करते थे। मैंने पूछा फिर क्या हुआ।
” इसके बाद सुरेश और उसके दोनों ऊत- पूत झाड़ू और टोर्च लेकर मकड़ी को ढूंढते रहे। ”
” मकड़ी ? ” मेरे और विजय के मुख से एक साथ निकला।
” वह जाले वाली मकड़ी ? ” मैंने अविश्वास से कहा।
” हाँ हाँ वही। या”नि स्पाइडर ! नीलू कहती है कि इस यज्ञ के बाद अगर मकड़ी दिख जाए तो समझ लो कोई मृत आत्मा भटक रही है। मिर्चों के धुंए से भाग जायेगी। — विम्मी और नीलू ने अपना कमरा अंदर से बंद कर लिया था मगर धुआँ सारे घर में भर गया। डबल ग्लेज़िंग की बंद खिड़कियाँ। यहां केन्या या भारत जैसी खुली थोड़े ही रहती हैं। फिर जो नेहा को छींकें चढ़ी ,हमको उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। सारी रात इमरजेंसी में काली हुई। बेचारी को ऑक्सीज़न चढ़ानी पडी। ”
” मकड़ी मिली ? ” हमने पूछा।
” ख़ाक मिलती ? मकड़ियां धरी हैं इस मौसम में ? अक्ल की दुश्मन है हत्यारिन ! ”
” किसकी ह्त्या कर दी ? ” विजय भी चुटकियां ले रहे थे।
” हत्या ही कही जायेगी। इसकी एक कजिन थी तारा। यह उससे जलती थी। जान बूझकर इसने और इसकी माँ ने उसका ब्याह गलत जगह करवा दिया। थे तो पैसेवाले मगर इससे भी ज्यादा दकियानूस। दो बरस के बाद पहले बच्चे को जनम देने तारा मायके आई। सूखकर काँटा हो गयी थी। जन्म देते वखत दम तोड़ गयी। बच्चा लेने उसका आदमी आया था। बड़ी बड़ी मूँछ दाढ़ी वाला काला भुजंग ! देख लो तो डर जाओ। ”
” च्च च्च च्च !
” च्च च्च च्च ”,मेरे मुँह से निकला। मेशी नशे में धुत्त था। आँखें मूंदकर जाने किन व्यथाओं में खो गया। उसके आंसू बह रहे थे।
” तुम प्यार करते थे तारा से ? ” विजय ने फुसफुसा कर पूछा।
मेशी चुप रहा। अचानक दृढ़ स्वर में बोला ,” सच बताऊँ प्रीतो ? तारा की ही खातिर मैंने नीलू को पनाह दी। वह मेरे लिए मरकर भी नहीं मरेगी कभी। उसे इस कमीनी की चाल का पता नहीं चला। चुपचाप मेरे ग़म में गल गयी। शायद वही ‘ मरी हुई आत्मा ‘ नीलू को अंदर- ही- अंदर सताती है।
यह दर्द भरी दास्ताँ हम चुपचाप सुनते रहे। रात काफी हो चली थी। खाना खाकर मेशी वहीँ सोफे पर सो गया। लगता था कोई बोझ उसकी छाती पर से उतर गया हो। विजय ने मुझे समझाया ,” तारा की बात विम्मी को मत बताना। ”
शादी में नीलू ने हमें भी बुलाया। गोरा दूल्हा ,काली और मोटी दुल्हन। अगवानी में उसके पिता ने दूल्हे को दस हजार पौंड का चेक पकड़ाया। नीलू का हाल उस बिल्ली जैसा समझो जो मक्खन- दानी में जा गिरी हो। बार बार वह दुल्हन को चूमती , बार बार दुल्हन उसके हाथ को परे कर देती। सब उसकी इस भोंडी प्रेम प्रदर्शनी पर कटाक्ष करते रहे। रात को दो बजे हम नीलू के भाई की मर्सेडीज़ में डोली ले कर आये। अचानक गेट पर नीलू ठमक गयी।
” इस दरवाज़े से मुझे दुल्हन अंदर नहीं ले जानी। ”
विम्मी ने मुझे और मेशी ने विजय की ओर देखा। टोनेवाली बात सिर्फ हम चार जाने ही जानते थे वहां। शायद नीलू के भाई को भी पता हो। उसने सुरेश के कान में कुछ कहा। सुरेश झेंपते हुए मेशी से बोला ,” वास्तु शास्त्र के अनुसार नए जोड़े का प्रवेश पूरब दिशा से होना चाहिए। तुम्हारा प्रवेश द्वार दक्षिण को जाता है ,यह ठीक नहीं। ”
कितना सच कितना झूठ राम ही जाने। बहरहाल अल्फ्रेड की फेंस के रास्ते ,पिछले दरवाज़े से दुल्हन का प्रवेश करवाया गया। घास गीली थी ,कीचड से बचाने के लिए उसने अपना भारी भरकम लंहगा घुटने तक समेट लिया। राम राम करके विवाह निमट गया। नया जोड़ा पेरिस हनीमून पर चला गया जिसकी बुकिंग भी लड़की वालों ने करवा दी थी। नीलू ने मेशी के रसूख से नई दूकान ले ली और उसके ऊपरी भाग में बने फ्लैट में रहने चली गयी।
पूरे ढाई महीने के बाद जीवन सम पर आया। मेशी के शादी में व्यस्त हो जाने के कारण दूकान की सेल पर बहुत फरक पड़ा। ऊपर से जब एक एक करके बिल आने शुरू हुए तो मेशी के हाथ के तोते उड़ गए। सबसे तगड़ा बिल आया टेलीफोन का। ऑपरेटर के ज़रिये भारत की लम्बी लम्बी कालें ! पूरे आठ सौ सत्तर पौंड का बिल। गैस और बिजली का बिल भी लगभग इसी के बराबर। मेशी ने पूछा ,सुरेश और नीलू का परिवार तो यहीं पर है तो फिर यह लम्बी लम्बी कॉलें किसे की गईं ? सुरेश बिना शर्माए बोला। ” ओह ओ ! वह तो नीलू के गुरु जी को को लगाई गईं थीं। यु सी ,हम बिना उनसे पूछे कोई काम नहीं करते। वही तो इस पूरे अनुष्ठान के संचालक बने हुए थे। ”
विम्मी ने जताया ” माता जी तो कहती थीं कि हम सनातनी लोग हैं। भगवान् को पूजते हैं और गुरु नहीं धारण करते। क्योंकि भगवान् सबके ऊपर है। आप लोग गुरु वाले कबसे हो गए ?”
सुरेश कानों को हाथ लगाकर ,नतमस्तक होकर ,अपने चतुर्दिक प्रणाम करके बोला , ” गुरु भगवान् से भी बड़ा होता है। गुरु बिना तीनों लोक ख़राब हो जाते हैं। अगली बार तुम लोग भी कंठी बंधवा लेना। ”
” नो थैंक यू ! ” विम्मी ने दृढ़ता से कहा। मेशी की मुट्ठियाँ बांध गईं। विम्मी अनायास ही अपने सास -ससुर की मान्यताओं का असली उत्तराधिकारी समझने लगी। उसी ने समझा बुझाकर मेशी को शांत किया। दोनों फिर से जी जान लगाकर अपने काम में जुट गए। विम्मी के फोन अक्सर आते मगर उसकी ” बब्बन हज्जामी ” नीलू पर अटक कर रह गयी थी। मसलन ,ज्ञान को नई मोटर साइकिल ले दी मगर हमारे बिलों के पैसे नहीं दिए। ज्ञान का एक्सीडेंट हो गया , तीन जगह से टांग की हड्डी टूट गयी। बेचारा। करे कोई ,भरे कोई। सबकी करनी अपने आगे आती है। देर है मगर अंधेर नहीं। ज्ञान ने न्यूक्लिअर फिजिक्स का कोर्स बीच में ही छोड़ दिया। पहले साल फर्स्ट आया तो भी। कारण ? गुरूजी ने मन किया है। कहते हैं यह बम बनाने की विद्या है। इसमें अनिष्ट है। पूछो बाबे तुझे कितनी फिजिक्स आती है ? आठवीं पास भी नहीं होंगे तांत्रिक जी। जब मेरे घर टोना रखवाया था तो क्या उसमे हिंसा या अनिष्ट नहीं था ? पाखंडी बाबा —–!
नीलू और सुरेश कुछ दिन के लिए केन्या लौट गए अपने टॉम जहां समेटने के लिए तब जाकरजरा शांति हुई। विम्मी का निर्मल व्यवहार काफी कुछ वापिस आने लगा। नेहा के संग साइकिल चलाकर वह दूर दूर तक पतझड़ के रंग देखने निकल जाती। धुंध भरी सुबहें दस ग्यारह बजे तक स्वच्छ नील आकाश में विलय हो जातीं। सांझ पड़े धूप स्कूल के बच्चों को घर का रास्ता दिखाने तक ही ठहरती। पलक झपकते ही सरे की ऊंची नीची वादियों पर शाम का साँवलका उतर आता। झुण्ड के झुण्ड पंछी गरम देशों की ओर पलायन करते नज़र आते।
विम्मी का फोन एक दिन आया तो मुझपर बरस पडी।
” प्रीतो तू कहाँ गयी थी ? मैं फोन मार- मार के थक गयी। ”
” हम जरा बाहर खाने- पीने चले गए थे। हमारी शादी की सालगिरह थी। ” मैंने बताया।
” हैं ! अकेले- अकेले अपने शगुन मना आई और हमें पूछा भी नहीं ? हाउ मीन ! ”
” एकदम से प्रोग्राम बन गया। प्लीज़ माइंड न कर। अब तेरी शादी की वर्षगाँठ हम संग मनाएंगे। मैं तुझे ट्रीट दूँगी प्रॉमिस ! ”
” हमारी शादी की वर्षगाँठ ? तुझे क्या पता नहीं ? ”
” क्या ? ”
” यही कि —-! अच्छा रहने दे। लम्बी कहानी है। लडकियां बड़ी हो रही हैं। बच्चों के मुंह में बात जायेगी। ”
मगर मेरी जिज्ञासा जकूज़ी की तरह पेट में त्वरित गति से हिलोरें मारने लगी थी। जल्दी – जल्दी घर का काम निपटाकर विजय से कहा ,” चलो ज़रा ,विम्मी को मनाने। बुरा मान बैठी है की हम उसे संग नहीं ले गए। ”
विम्मी ने गरम – गरम कॉफी पिलाई। मेशी और विजय ड्रिंक्स लेकर ऑफिस में जा बैठे। बच्चियां नेहा के कमरे में और मैं विम्मी के संग सोफे में दुबककर बतियाने लगीं। विम्मी झेंपती हुई सी बोली —
” दरअसल हमारी शादी कभी हुई ही नहीं। ”
मैं समझी कि मज़ाक कर रही है। ” ऐसा भी कहीं होता है ? ”
” हो ही गया समझो। ” विम्मी हंस पडी।
” यह भी कोई बात हुई ? रखैल है क्या ? ”
” न रखैल , ना शादीशुदा। कुछ भी मायने नहीं रखता। ”
” लव मैरिज है ! गन्धर्व विवाह !! शकुंतला रानी ? ”
विम्मी मंद – मंद मुस्कुराती रही। फिर बताया कि मेशी की शकुंतला रानी वह नहीं ,कोई और थी।
” उसका नाम था तारा। बचपन का प्यार था। दोनों के घर पास पास थे। उसका बड़ा भाई इसके संग पढता था। सब समझते थे कि बड़े होने पर दोनों का ब्याह हो जाएगा। इसलिए उसकी माँ इनपर सख्त निगरानी रखती थी। कहते हैं कि तारा बहुत सुघढ़ और सुन्दर थी। मेशी का भाई सुरेश जब भारत से बी ए करके लौटा तो तारा की मौसी ने अपनी नीलू की शादी उससे कर दी। नीलू अमीर थी इसलिए दिमाग भी सातवें आसमान पर चढ़ा रहता। काम काज में आलसी थी इसलिए अक्सर माता जी से डाँट खाती। माताजी ने कभी कह दिया होगा कि तेरी बहन तारा तो बड़ी चतुर है तू कैसे फूहड़ रह गयी।
बस नीलू जल मरी। तारा की माँ ने ही नीलू की शादी सुरेश से जान बूझकर करवाई थी ताकि भविष्य में दोनों बहनें मिलकर रहेंगी। मगर नीलू ने उलटी चाल चली। तारा की माँ से रोज़ मेशी की बुराईयां करने लगी। बस तारा की माँ का मन बदल गया।
” नीलू की माँ ने अपने ही मोहल्ले के एक संपन्न जाट परिवार में तारा का रिश्ता करवा दिया। वह नीलू के भाइयों का दोस्त था और गुड़ का थोक व्यापार उनके घर होता था। पैसा बहुत था मगर घर का रहन- सहन ठेठ गंवार और गंदा। तारा दो ही वर्ष में घुट- घुट कर आधी रह गयी। एक बच्चे को जनम देकर मर गयी क्योंकि उसको टी बी हो गयी थी। मेशी का दिल टूट गया था। इसकी हालत देखकर पिताजी ने इसकी बड़े शहर में नौकरी लगवा दी। यह पुलिस में भर्ती हो गया। काम में चतुर था अतः जल्दी ही प्रेजिडेंट के सुरक्षा बल में रख लिया गया। जहां जाए प्रेजिडेंट वहां जाए मेशी। इसने कराटे ,कुश्ती ,निशानेबाज़ी ,तैराकी आदि सबकी ट्रेनिंग ली। तेज रफ़्तार गाड़ी चलाना भी सीखा।
” उसी शहर में मेरी बड़ी बहन निम्मी भी रहती हैं। मेरे जीजाजी भी सरकारी नौकरी में हैं अतः मेशी से उनकी दोस्ती हो गयी इक्तेफ़ाक़ से। जीजा जी की तीन कुंआरी बहने थीं। मगर मेशी ने साफ़ मना कर दिया शादी करने से। जब उसने निम्मी बहनजी को तारा के बारे में बताया तो उनहोंने कहना ही छोड़ दिया।
” इधर हम सात भाई- बहन थे। पिताजी कालका स्टेशन पर नौकरी करते थे। हम पास ही के गाँव परमानू में रहते थे। थोड़ी खेती- बाड़ी भी थी। घर में गाय भैंस थी। मेरे भाई पढ़ने में बहुत होशियार थे। हम बहनें भी स्कूल जाती थीं। सोलह की होने पर बड़ी बहन का ब्याह पुरी परिवार में हो गया। जीजाजी को केन्या में सरकारी नौकरी मिल गयी। बाद में उन्होंने केन्या की नागरिकता ले ली और अपने माँ-बाप और तीन बहनों को भी उधर बुला लिया। सब ठीक चल रहा था कि हमारे परिवार को पोसा पड़ गया। पिताजी अचानक चल बेस। उनके ग़म में माताजी भी दो बरस के बाद दम तोड़ गईं। हम अनाथ हो गए। सबसे बड़े मदन भाई तब केवल अठारह बरस के थे और सबसे छोटी मैं ,सिर्फ आठ साल की। मेरी शम्मी बहनजी कुल पंद्रह साल की थीं। उनहोंने रसोई संभाली। और पिता जी की जगह मदन भाई को रेलवे में नौकरी मिल गयी। उन्होंने कभी भी शादी न करने का प्रण ले लिया। धीरे- धीरे हम कुछ सँभले। शम्मी बहनजी छह जनों का खाना बनातीं और मुझे भी सम्भालतीं। दो- चार साल बाद मदन भाई ने अपने पीठ के भाई रमन की शादी करवा दी। रमन भाई की पत्नी बहुत समझदार थीं। घर में बहू के आ जाने से व्यवस्था भी आ गई। शम्मी बहन जी का ब्याह भी समय से हो गया। उनसे छोटे दोनों भाई अभी पढ़ लिख रहे थे। निम्मी बहन जी इतने सालों में कभी भारत नहीं आ पाईं। उनके ससुर की मृत्यु हो गयी थी और अब घर में उनकी सास का शासन चलता था जो डंडे से बात करतीं थीं।
” हमारे सौभाग्य से हमारे तीसरे भाई रंजन ने आई ए एस का इम्तिहान पास कर लिया। उनकी शादी बड़े घर में हो गयी। घर में पहली बार फोटोग्राफर आया और ब्याह की एल्बम बानी। कई फोटो निम्मी बहन जी को भी भेजे गए। जिन्हें उन्होंने एक अलग एल्बम में सजा लिया। इक्तेफ़ाक़ से जब अगली बार मेशी उनके घर आया तो उसको वह दिखाई गयी। कुछ देर बाद मेशी गंभीर स्वर में बोला —
”निम्मी भाभी ,तुम चाहती हो कि मैं शादी कर लून ? ”
” मैं ही क्यों सब यही चाहते हैं मेशी। ”
” तो फिर इस लड़की से करवा दो। ”
मेशी की उँगलियों में मेरी तस्वीर फँसी थी। सास के डर से निम्मी बहन जी चुप मार गईं। शादी की बात तो वह कई बार उठा चुकी थीं मगर अपनी ननदों के लिए। मगर मेशी ने जीजाजी के कान में यह बात दाल दी। दोनों जिगरी दोस्त थे। जीजा जी झट मान भी गए। उन्होंने मेरे भाईयों को खुद पत्र लिखा और मुझको केनिया बुला भेजा। मैं सत्रह पूरे कर अठारह में लगी थी और खींच तानकर आठवीं तक पढ़ी थी। ”
विम्मी की आँखें भर आई थीं। उनको टिश्यू से पोंछकर आगे बोली —-
” बस प्रीती ,केवल चिट्ठी पटरी के दम पर मेरे भाईयों ने ब्याह सुधवा लिया। भाई जिसका खुद आई ए एस हो उसे देर क्या लगनी थी झट से एक दिन पासपोर्ट भी बन कर आ गया। भाई- भाभियों ने सारे गाँव को न्योता भेज दिया। सबने चूड़ा मनसा ,करीले पहनाये। रमन भाई ने कन्यादान कर दिया। फूलों वाली गाड़ी में बिना दूल्हे के दुल्हन विदा कर दी गयी। मेरे साथ एक सूटकेस और एक छोटी सी अटैची रख दी गयी। .पर्स पकड़ना भी नहीं आता था। फिर दिल्ली से सीधे हवाई जहाज में।
निम्मी बहन जी ने मुझे लिवा लाने का सारा इंतजाम कर रखा था । पहुँचते ही शादी हो जानी थी , जिसका इंतजाम मेशी के घर रखा गया था ,ताकि उनकी सास को भनक ना लगे। मैंने ठहरना भी मेशी के ही घर था। मगर जब मैं पहुंची तो केन्या में सरकार के खिलाफ झगड़ा शुरू हो गया। मेशी के घर टाला पड़ा था और वह भागकर कहीं छुप गया था। मरता क्या न करता। जीजाजी मुझे अपने ही घर ले गए। मुझको गुलाबी सूट और चूड़े में देख कर बहन जी की सास तो उबल पड़ीं। छाती पीटकर रोईं कि सयानी बहनों के बैठे तूने साली बुलवा ली। उनके दफ्तर चले जाने के बाद वः निम्मी बहनजी पर अग्निबाण चलाने लगीं। उन्हें लाख समझाया मगर इतना अच्छा लड़का छूट जाने पर उनका गुस्सा भयंकर रूप से उबला। मुझे तो उन्होंने हजारों श्राप दिए। मैं रो- रो कर अंधी हो गयी। मैंने जीजा जी से पाँव छू कर प्रार्थना की कि इतनी मिटटी- पलीद करवाने से तो अच्छा होगा यदि आप मुझको वापिस भारत भेज दें। चुपचाप सामान वाली कोठरी में संदूकों पर लेटी छुप- छुप कर रोया करती थी। उस कोठरी में एक सींखचों वाली खिड़की थी। एक दिन जब बहुत रो चुकी तो देखा ,मेशी खिड़की के सींखचे पकड़कर मुझे निहार रहा था। मैं डर गयी पर वह बोला ,” मैं मेशी हूँ। तेरा मेशी , तू वापस मत जाना। मैं तुझे लेने जरूर आऊंगा। ”
इतना कहकर वह हंसा और तुरंत ओझल हो गया। मैं हक्की – बक्की रह गयी। वह एक मिनट के लिए अपना चेहरा दिखाकर गम हो गया था मगर मेरे लिए वह खाली खिड़की का चौखटा मेशी की जीती जागती तस्वीर बन गया। जब होश आया तब मैंने दोनों हथेलियों से अपना चेहरा ढाँप लिया ,जैसे वह अभी भी मुझे देख रहा हो। मन- ही- मन मैंने देवी माँ का ध्यान किया और उनकी कसम खाई कि यहीं जिऊंगी ,यहीं मरूंगी। देवी माँ वरदान देना और मेशी के वायदे की लाज रखना। बिना पंखे का वह चूहों और जालों वाला कमरा मेरा मंदिर बन गया। उस खिड़की के सामने जाते ही मेरे सारे दुःख छू -मंतर हो जाते। मैं लम्बी – लम्बी साँसें लेकर उसमे बसी मेशी की याद को अपने अंदर उतार लेती। मैंने अपना यह अनमोल राज़ किसी को नहीं बताया। आज पहली बार तुझे सुना रही हूँ ।
बहन जी की सास ने एक दिन धोखे से मुझे कोयलेवाली अँधेरी कोठरी में बंद कर दिया। और चाबी छुपा दी। निम्मी बहन जी रोती रहीं मगर नहीं खोला। रात को जीजा जी ने मुझे निकाला।
जीजाजी ने फैसला सुना दिया कि यह लड़की मेरी जिम्मेदारी पर आई है अतः यहीं रहेगी। अलबत्ता घर का काम काज कर देगी जबतक इसकी शादी न हो जाए। उनकी माँ ने भी अपना भाव सुना दिया। इस उपकार के बदले में मैं अपना जेवर और कपड़ों का सूटकेस उनकी सँभालात में रखवा दूँ। अतः मुझे ऐसा ही करना पड़ा। दो चार दिन बाद देखा कि रोज़ मर्रा के कपडे ,विदाई का गुलाबी सूट और चप्पल वह मेरे पलंग पर रख गईं थीं। हम लोग समझ गए कि बाकी सामान उन्होंने हथिया लिया है। ”
मेरी टेढ़ी किस्मत से केन्या में राजनैतिक फसाद हो गया। प्रेजिडेंट ‘ जोमो केन्याटा ‘ के खिलाफ जुलूस निकाले गए। उसके मित्र परिवारों और निजी सेवकों की धर- पकड़ होने लगी। मेशी बिना बात के जेल में डाल दिया गया. जोमो केन्याटा इलेक्शन में खड़ा था। जीजा जी ने आकाश पाताल एक कर दिया मेशी को ढूंढने में। हम दम साधे इंतज़ार करते रहे। शहर का बुरा हाल। किसी का एतबार नहीं रहा। मैं दिन भर घर का काम करती ,रात को सितारों को ताकते ताकते सो जाती। बहन जी और मैं रोटी भी छुप- छुपाकर खाते क्योंकि बुढ़िया एक- एक निवाले पर हमें कोसती। जीजा जी दफ्तर से आकर खाना खाते और एक्स्ट्रा काम करने का बहाना बनाकर मेशी को खोजने निकल जाते। मेरे भदरंग हो गए चूड़े की खुदाई में बर्तन मांजने से चूल्हे की राख भर गयी थी। मुझे न दिन याद रहते ,न तारीखें। हम परमानू चिट्ठी भी न डालते डर के मारे।
छह महीने के बाद जीजाजी को पता चला कि मेशी राजनितिक कैदियों के संग बंद है। उसके संग कोई बुरा सलूक नहीं हो रहा। अगर प्रेजिडेंट फिर से जीत गया तो सब छोड़ दिए जाएंगे।
वर्ना क्या होगा पता नहीं। मैं सुबह उठकर देवी की आराधना करती। डर की जगह भक्ति और विशवास ने ले ली। कोई है मेरा और वह जरूर आएगा। मैं सुहागिन हूँ। यहीं मर- खप जाऊंगी मगर वायदा नहीं तोडूंगी। वैसे भी भारत में कौन मुझसे शादी करनेवाला था।
एक दिन चौका चूल्हा बंद करके हम दोनों बहनें सोने गईं। रात के ग्यारह बजे होंगे। मैं बिस्तर पर पड़ते ही सो गयी। बहनजी जीजाजी की राह देख रही होंगी। अचानक मुझे लगा कि जैसे भूकंप आ गया हो। बहनजी मुझे बदहवास झकझोर रही थीं। मैं सपना समझकर फिर से सो गयी।
” उठ ,तेरा ब्याह हो रहा है इसी दम। उठ उठ !”
मगर मैं तो पतथर की तरह सोई थी। जब जीजाजी ने एक गिलास पानी मुझपर डाला तब आँख खुली। बहनजी फुसफुसाई , ” जा अपना गुलाबी सूट पहन ले , तेरा दूल्हा आ गया ! ”
मैं जब तक चप्पल पहनकर आई , उनहोंने बुरादे की अंगीठी को फूँकनी फूँक - फूँक कर दहकाया और बोलीं ,जल्दी जल्दी इस अंगीठी के चार फेरे ले लो। हमने एक दूसरे का हाथ पकड़कर वैसा ही किया। मैंने मेशी की शकल तक नहीं देखी उस हड़बड़ाहट में। बस आज्ञापालन करती गयी।
बस इतनी सी शादी हुई हमारी। फेरे पूरे होते ही मेशी ने कहा चल भाग जल्दी वरना प्लेन छूट जायेगा। मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था। फिर भी जो जिसने कहा मैंने किया। निम्मी बहन जी ने एक पर्स पकड़ा दिया जिसमे कुल जमा बीस रुपये थे। उनकी टोटल संपत्ति।
पहले कुछ मील जीजाजी हमें किसी की छकड़ा पिकअप में बैठकर कर शहर के बाहर काफी दूर छोड़ आये। उनके पाँव छूकर मेरा रोना निकल आया। मगर मेशी गुर्राया ,चल भाग वक्त नहीं है। बदहवास हाथ पकड़े हम जंगलों की ओर भागे। गुप्प अँधेरा। उल्लू और लकड़बग्घे बोल रहे हे। ना बन्दा न बन्दे की ज़ात। पर हम भाग रहे थे। दूर झाड़ियों में एक आर्मी का प्लेन खड़ा था। हम उसपर चढ़ा लिए गए। उसमे कोई सीट नहीं थी। फर्श पर बोरियां थीं और कुछ हमारे जैसे डरे – सिमटे लोग हमें घूर रहे थे। प्लेन जहाँ – तहाँ रुक जाता। जब ख़तरा टल जाता तब फिर से उड़ने लगता। अंत में हम एक बड़े शहर आ गए। यह शायद एडिसअबाबा था। हम इथिओपिया आ पहुंचे थे। यहां से हमें बी ओ ए सी की फ्लाइट मिल गयी। जीजा जी के किसी दोस्त ने मेरा पासपोर्ट आदि बनवा दिया था। लंदन की दो टिकटें थीं। मेरे हाथ में मेरी छोटी अटैची भी थी जो जीजाजी ने पकड़ा दी थी मगर कब ,मुझे याद नहीं।
लंदन पहुंचकर मेशी ने सीधे मेनचेस्टर की बस ली और हम उसकी बड़ी बहन के घर आ गए। मुझे उसके संग देखकर उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ। मेशी ने शादी कर ली !
मैंने सोंचा था जीजा जी ने मेरे गहने दे दिए होंगे। मगर उस अटैची में सिर्फ तीन साड़ियाँ ही निकलीं ,न पेटीकोट न जाँघिया। मेशी ने बहन से उधार लेकर अगले दिन कुछ इंतजाम किया तब मैं नहा- धोकर तैयार हुई। मेशी की बड़ी बहन सुदेश बहन जी का हिसाब भी निम्मी बहनजी वाला था। वह भी एक ही घर में अपनी सास और जेठानी के संग रहती थीं। आने के एक हफ्ते बाद ही वह मुझे अपनी फैक्ट्री में काम करवाने ले गईं। मगर जब पगार मिली तो उनकी जेठानी ने हथिया ली। हमारे रहने और खाने का खर्चा। धीरे धीरे सब कुछ सहने की आदत हो गयी। कड़कड़ाती ठण्ड ,अनजानी भाषा , कामपर अंग्रेजों का गंदा व्यवहार। और घर में भी काम ,ताने। यहां भी मुझे ही बर्तन मलने पड़ते। फिर भी मन में विचार आता कि अपने ही कौन अच्छे थे मेरे संग कि बाहरवालों से शिकायत रखूँ।
एक दिन एक अंग्रेज औरत ,बस्ता कॉपी लेकर हमारा दरवाज़ा खड़खड़ाती आ पहुंची। उसने बताया कि पड़ोसी ने शिकायत लिखवाई है कि इस घर में बहुत ज्यादा लोग रहते हैं। उसने सबका हवाला लिया। मैंने बता दिया कि हम उनके घर आश्रित मेहमान थे। मेरा घरबार ,परिवार आदि कुछ नहीं है। वह मुझको अलग ले गयी। मैं निपट अजानी अपने केन्या से भागने की सारी कहानी बता दी।वह न जाने क्या क्या लिखती रही। हम दोनों बहुत डर गए। मैं रोने लगी। उसने मुझे दिलासा दी और कहा की घबराओ नहीं मैं तुम्हारे लिए अच्छा ही करूंगी। उसने हमें पोलिटिकल शरणार्थी लिख लिया।
चार दिन बाद हमें लंदन जाने के लिए एक पत्र मिला। हम लंदन आ गए। क्रोयडन में हमें एक सरकारी फ्लैट रहने को मिला और मेशी को बसें चलाने की नौकरी। इसके बाद ही हमारी गाड़ी चल निकली।
विम्मी थक कर चुप हो गयी थी।
मैंने पूछा ,” विम्मी कुछ याद है कि कब ,किस दिन तुमने अंगेठी के फेरे लिए थे ?”
” नहीं। शायद उस दिन बृहस्पतिवार था। दिवाली हो चुकी थी। ”
मैंने पूछा ,” विम्मी तेरे गहने वापिस मिले क्या ?”
” जब मेरी सास की मृत्यु हुई थी मेशी केन्या गया था। जीजाजी से भी मिला। निम्मी बहन जी ने दबी जुबान से समझाया था कि मेशी को छुड़वाने में काफी पैसा खर्च हुआ था। रिश्वतें भर कर ही काम बना था। फिर जहाज की टिकटें भी पिछले दरवाज़े से दोगुने तिगुने दाम खरीदी गईं थीं। ”
” विम्मी तेरे बड़े भाई मदन ने शादी की ? ”
” नहीं। ”
” और तेरा छोटा भाई ? ”
” पुलिस में है। ऊंची पोस्ट है उसकी जालंधर में। ”
” तू कभी मिलने गयी भारत ? ”
” हाँ। नेहा जब पांच बरस की हुई थी हम दो हफ्ते के लिए गए थे। मेरी बड़ी भाभी ने मेरी माँ की चार चूड़ियाँ चलते समय शगुन के तौर पर दीं। बहुत बड़ा दिल है उनका। कहा कि तेरे पास भी कोई मायके की निशानी रहे। ”
दिवाली फिर से आनेवाली थी। विम्मी का मन था कि सारे परिवार को बुलाकर नीलू की बहु की पहली दिवाली अपने घर मनाये क्योंकि नीलू गुरु जी के भंडारे में भारत गयी हुई थी। मगर तभी वह बीमार पड़ गयी। हफ्ते भर बुखार ही न उतरा। फ़ोन करके मुझे बुलाया।
” अब क्या हो गया ? ”
” मालुम नहीं क्या। चार दिन से जी बहुत घबरा रहा है। कुछ खाने का भी मन नहीं कर रहा। बुखार पीछा नहीं छोड़ रहा। ”
” डॉक्टर को दिखाया ? ”
” नहीं तू संग चल। ”
” मैं क्या कर लूंगी ? मैं कोई डॉक्टर तो हूँ नहीं। ”
विम्मी ने तुनककर फोन पटक दिया। जरूर कुछ गड़बड़ है। खाना खाने के बाद हम लोग उसे देखने गए। मेशी को इस बारे में उसने कुछ नहीं बताया था। वह इसे मामूली थकान समझ रहा था। मैंने उसे झिड़क कर समझाया ,
” यह भी कोई मज़ाक है ? बीमार तो सब पड़ते हैं। इसमें छुपाना क्या। ”
विम्मी मुंह बंद किये बैठी रही।
” ओह ! अब समझी। कोई ऐसी वैसी तकलीफ है क्या ? पति से क्यों छुपाई ? ”
विम्मी अटक- अटक कर बोलने लगी , ” पिछले दो महीनों से मेरा मासिक एकदम नाममात्र का आ रहा था। इस बार एकदम ख़तम। अठारह दिन हो गए हैं। मुझे लगता है कि मेरा यह सिलसिला बिलकुल बंद हो गया है। हमेशा के लिए। माता जी ठीक कहती थीं कि नीलू ने कुछ कर दिया। ” कहते कहते वह रोने लगी। ” मेशी को किस मुंह से बताऊँ। सोंचेगा मैं बूढी हो रही हूँ। तुझे तो पता ही है न ये आदमी क्या- क्या सोंचते हैं ? अभी तो मैं सिर्फ चौंतीस साल की हूँ। ”
” अरे बस भी कर ! नीम हकीम ख़तर -ए -जान !! बिना डॉक्टर को दिखाए अपने मन से कहानी बना ली ? अंदर गाँठ भी तो हो सकती है। फ़ालतू के वहम पालने से रोग बढ़ता है। चल कल सुबह तुझे मेरे संग क्लिनिक चलना होगा। नहीं बताना मेशी को तो न सही। बाद में देख लेंगे। ”
विम्मी गाँठ रिसौली की बात सुनकर सहम गयी और झट चलने को मान गयी।
अगली सुबह हमने उसकी जांच करवाई। डॉक्टरनी ने बताया उसके पाँव भारी हैं। नए गर्भ के तीन मॉस करीब पूरे हो चुके हैं। डॉक्टर ने उसे समझाया कि कभी कभी गर्भ ठहर जाने के बाद भी एक आध धब्बा दिख जाता है आतंरिक कारणों से। मगर अब सब कुछ सामान्य है। उसको अपनी देखभाल करनी होगी। ठीक से समय पर खाना पीना होगा।
विम्मी मेरे गले लगकर ख़ुशी के आंसू बहा रही है।
कर भला हो भला ,अंत भले का भला।
- कादंबरी मेहरा
प्रकाशित कृतियाँ: कुछ जग की …. (कहानी संग्रह ) स्टार पब्लिकेशन दिल्ली
पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) सामयिक पब्लिकेशन दिल्ली
रंगों के उस पार (कहानी संग्रह ) मनसा प्रकाशन लखनऊ
सम्मान: भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान २००९ हिंदी संस्थान लखनऊ
पद्मानंद साहित्य सम्मान २०१० कथा यूं के
एक्सेल्नेट सम्मान कानपूर २००५
अखिल भारत वैचारिक क्रांति मंच २०११ लखनऊ
” पथ के फूल ” म० सायाजी युनिवेर्सिटी वड़ोदरा गुजरात द्वारा एम् ० ए० हिंदी के पाठ्यक्रम में निर्धारित
संपर्क: यु के