नमस्कार,
आज बहुत दिनों बाद आप सब से मुखातिब हुई हूँ…| मेरी इस गैरहाजिरी का सबब वैसे तो कुछ खास नहीं था, बस बेटे के स्कूल की छुट्टियाँ थी…सो थोडा मनोरंजन, मेहमानों का आना-जाना…बेटे की फरमाईशें…वगैरह…वगैरह…|
अब स्कूल फिर से खुलने वाले हैं…कुछ तो खुल भी चुके हैं, सो अचानक एक दिन किताबों की अलमारी साफ करते-करते अपनी एक पुरानी डायरी मिल गयी… कुछ पन्ने पुराने हो फट से चुके थे…| उन्हीं के बीच मुझे अपनी वह कविता मिल गयी, जो मैंने तब लिखी थी जब मैं खुद स्कूल में पढ़ती थी |
आज मैं वह कविता ज्यों-की-त्यों आप के सामने प्रस्तुत कर रही हूँ…बिना किसी सुधार या संशोधन के…|
आप की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी…|
कविता
मेरा बचपन
हर बार
स्कूल खुलने पर
जब मैं
किताबों के ढेर में खो जाती हूँ
तब
मुझे लगता है कि जैसे
इन किताबों के नीचे
दबा है मेरा बचपन
और मैं ” मैं ” नहीं
सिर्फ़ एक किताब हूँ
जो
हर वर्ष
कैलेण्डर बदलने के साथ
खुद भी
अंक दहलीज़ पार करती
बदलती जाएगी
और फिर
एक दिन अचानक
जब आँगन में खिलेगी धूप
तब चौंक कर
खोजेगी अपना बचपन
पीली…बदरंग…अधफटी
किताबों के बीच…।
- प्रियंका गुप्ता
जन्म- ३१ अक्टूबर, (कानपुर)
शिक्षा- बी.काम
लेख़न यात्रा- आठ वर्ष की उम्र से लिख़ना शुरू किया, देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित
विधा- बचपन से लेखन आरम्भ करने के कारण मूलतः बालकथा बड़ी संख्या में लिखी-छपी,
परन्तु बडी कहानियां, हाइकु,कविता और ग़ज़लें भी लिखी और प्रकाशित
कृतियां- १) नयन देश की राजकुमारी ( बालकथा संग्रह)
२) सिर्फ़ एक गुलाब (बालकथा संग्रह)
३) फुलझडियां (बालकथा संग्रह)
४) नानी की कहानियां (लोककथा संग्रह)
५) ज़िन्दगी बाकी है (बड़ी कहानियों का एकल संग्रह)
पुरस्कार- 1) “नयन देश …” उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा “सूर अनुशंसा” पुरस्कार प्राप्त
2) “सिर्फ़ एक गुलाब” प्रियम्वदा दुबे स्मृति पुरस्कार-राजस्थान
3) कादम्बिनी साहित्य महोत्सव-९४ में कहानी “घर” के लिए तत्कालीन राज्यपाल(उ.प्र.) श्री मोतीलाल वोहरा द्वारा अनुशंसा पुरस्कार प्राप्त