मिट्टी की सुगन्ध

 

आज इस हवा में
अजीब सी सुगन्ध आती है,
जो सीधी मेरे गांव से चलकर
मेरी सांसों में समाई जाती है।

यह सुगन्ध लगता है,
मेरे गांव की मिट्टी की है।
जो बारिश की बूंदों से
सरोबार होने पर ही आती है।

आज इस हवा में
अजीब सी सुगन्ध आती है।

या फिर यह भीनी सुगन्ध
मेरी मां के आंचल से
स्नेह भरी हुई ममता की
मुझको फिर याद दिलाती है।

आज इस हवा में
अजीब सी सुगन्ध आती है।

दूसरी फिर यही सुगन्ध
प्रेमिका के बदन की है लगती
जो नहाने के बाद प्रियतमा
प्राकृतिक इत्र लगाती है।

आज इस हवा में
अजीब सी सुगन्ध आती है।

तुम कब आओगे
खिलती हुई कलियां
मुर्झा रही हैं।
तुम अभी तक आये नही क्यों
ये हंसी शाम जा रही है।

तेरा दीदार ही जिन्दगी है मेरी
तेरी रेखायें हाथ की
अब तो मंजिल है मेरी
इन पर चल कर बस मुझे
मंजिल अपनी पानी है।

तुम अभी तक आये नही क्यों
ये हंसी शाम जा रही है।

तेरी मस्त-मस्त आंखों में
दिखाई देती है तस्वीर कल की
जिसमें तरह-तरह के रंग भर
खुदा ने आंखों में तेरे सजा दी
यही तो बस मेरी निशानी है।
तुम अभी तक आये नही क्यों
ये हंसी शाम जा रही है।

 - नवल  पाल

कंप्यूटर ऑपरेटर ,
झज्जर , भारत

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