चाणक्यपुरी वाला हमारा सरकारी बंगला, जहां दिल्ली, दिल्ली है ऐसा कम ही लगता। साफ-सुथरा वीआईपी एरिया। इतनी हरियाली दिल्ली के किसी और इलाके में शायद ही देखने को मिले। हमारे घर के सामने तो जैसे सघन अशोक वाटिका ही बनी थी। यह एक हरा-भरा सरकारी बगीचा है। बगीचे में तमाम तरह के पेड़-पौधे हैं। पर मेरी .ष्टि में बगीचे में सबसे खूबसूरत पेड़ वही है जिसके ऊपर गर्मी-भर बैंगनी रंग के फूल खिलते हैं। हर बार जब भी वह पेड़ बैंगनी फूलों से लद जाता, मैं उसका नाम जानने को उतावली होती-कई बार किताबों, पत्र-पत्रिकाओं के पन्ने पलटती, शायद इस पेड़ का वर्णन या फोटो दिख जाए, पर आज तक नहीं जान पाई इसका नाम। लंबे तनेवाले इस पेड़ के शीर्ष पर फैले छोटे-छोटे जामुनी रंग के फूल और कलियों के गुच्छे मुझे किसी ग्रामीण स्त्री की वायल की फूलोंवाली चुनरी जैसे लगते। घर के बाईं तरफवाली खिड़की खोलते ही ध्यान उधर चला जाता। काफी बड़े क्षेत्र में पेड़ की छत्रछाया फैली हुई। गुलमोहर जैसे आकार-प्रकार के इस पेड़ पर तरह-तरह के पंछी अपना बसेरा बनाए रहते हैं। फागुन के बाद तपती दोपहर में जब ज्यादातर पेड़ पतझड़ का गम मना रहे होते हैं या फिर अंगारे जैसे सुर्ख रंग के फूलों से धधकते लगते हैं ऐसे में शांत बैंगनी रंग के फूलों से ढका यह पेड़ आंखों और दिल को सकून देता है। पेड़ के नीचे ज्यादातर छांव रहती है। शायद इसीलिए वहां एक बेंच भी लगी है। अक्सर राहगीर उस बेंच पर सुस्ता लेते हैं। शाम को मोहल्ले के कुछ बुजुर्ग एकत्र होते हैं। बहुत बार मेरा भी मन करता उस ठंडक में जाकर कुछ बिखरे बैंगनी फूल उठा लाऊं।
एक दोपहर जब गर्मी अभी शेष थी और ठंडी-गरम मिली-जुली हवा स्पर्श कर रही थी, मैं सोनरंग की वायल में फूल टांकती अपने कमरे में बैठी थी। खिड़की खुली थी और रेडियो पर मेरा मनपसंद गजलों का कार्यक्रम बज रहा था-उस भरी दोपहर में खिड़की से मेरी नजर पेड़ की तरफ गई तो मैंने देखा, पेड़ के नीचे एक लड़का और एक लड़की बैठे हैं। वे दोनों अपने-आपमें ही मग्न थे-जाने क्यूं अच्छा लगा उन्हें दुखकर। मैं कुछ देर देखती रही। फिर अनायास ही मैं मुस्करा उठी और खिड़की बंद कर, आंखें मूंद लेट गई। लड़का और लड़की खयालों में ही रहे-प्यार की गुनगुनी दोपहर ऐसी ही होती है- एक राहत भरी छांह को तलाशती हुई। धुंधलाती स्मृतियों में ऐसी ही किसी दोपहरी में बरसों पहले एक ग्रीटिंग कार्ड स्केच के ऊपर खिली गुलजार की पंक्तियों का शब्द-शब्द याद आने लगा-
याद है, एक दिन
मेरे मेज पे बैठे-बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुमने
छोटे-से इस पौधे का
एक स्केच बनाया था!
आकर देखो,
उस पौधे पर फूल आया है!
जब-जब भी अपने बगीचे के आम पर बौर आते रहे ये पंक्तियां याद करती रही… हां, चुपचाप पौधे पर फूल खिलते रहे। यह विचार उठता रहा कि यह पेड़ इन पंछी जैसे लड़के-लड़की को भी एक बसेरस बसाने का सुंदर सपना दे रहा है। करवट बदल सोने की कोशिश करती, पर थकान के बावजूद नींद नहीं आनी थी न आई!सधे रिकॉर्ड की तरह दिमाग पर कुछ विस्मृत तरंगें उठने लगीं। मैं बेचैन अहसास के साथ फिर करवट बदलती हूं, पर लगा, वह लड़का और लड़की और वह बैंगनी फूलोंवाला पेड़ मेरे स्मृति-पटल से विस्मृत होने के भ्रम की धूल झाड़ रहे हैं-क्या हो गया है मुझे?उठकर बैठ जाती हूं। एक कुनमुनाहट-सी भीतर रेंगने लगती है। मैंने खिड़की खोल दी। तपी हुई हवा का एक झोंका घर में प्रवेश कर गया। मेरी नजरें फिर पेड़ के नीचे गईं, अब लड़का और लड़की जा चुके थे। वहां कोई नहीं था। उस रिक्त हुए स्थान पर कुछ बैंगनी फूल झड़े हुए थे। फूल मुस्करा रहे थे। शायद प्यार की उनकी छोटी-सी मुलाकात का अहसास वहां मौजूद था। मैं पलटी। रेडियो पर अंतिम गजल बज रही थी-
पसीने-पसीने हुए जा रहे हो,
तुम दोनों कहां से चले आ रहे हो…
जगजीत सिंह चित्रा सिंह के प्यार की सारी कशिश उनक स्वर में उतर आती है। उठकर मैं किचन में गई और चाय बनाकर ले आई। खाली घर में जाने क्यूं लगने लगा, मैं अकेली नहीं हूं। एक अहसास है जो मेरे साथ-साथ चल-फिर रहा है। चाय का कप पकड़े-पकड़े खयाल आया कि लंबे अरसे बाद आज फिर दोपहर में चाय की तलब?क्या मतलब है इसका?नौकरी छोड़ने और शादी होने के बाद से दोपहर में चाय तो मैंने पी ही नहीं थी।
अगला दिन-फिर वही दोपहर, वही मैं और मेरा खालीपन। आम के पेड़ पर तोते बोल रहे थे-उनकी आवाज के साथ मैं कमरे से बाहर आ गई और आम के पेड़ के नीचे चली गई। एक अलग ही अहसास फैलने लगा मेरे वजूद पर। आम की पत्तियां तोड़कर हथेली पर मसल डाली, पत्तियों की महक अच्छी लगती है मुझे। यादों की महक-सी छाने लगी मुझ पर…तुम कितना चिढ़ते थे, मेरी इस आदत पर…सारे हाथ गंदे कर लेती हो तनु, एलर्जी हो जाएगी। मैं इन पत्तियों को सूंघती थी और छींकें तुम्हें आती थीं। कितना सुखद होता था वो लंच टाइम जब हम चाय की गुमटी के पीछेवाले आम के पेड़ों के झुरमुट के नीचे जा बैठते थे। तुम मेरे लंच बॉक्स में रोज आम का अचार देखते ही मुस्कराने लगते थे। ”तनु, थोड़े आम के पत्ते घर ले जाओ, सब्जी बना लेना। तुम्हारा बस चले तो तुम आम के पत्ते भी खाने लगोगी।
”हां तो, तुम्हें भी खिलाऊंगी, क्या बिगाड़ा है आम के पेड़ ने तुम्हारा?बैठते तो रोज यहीं हैं ?”
”अच्छा, बाबा अच्छा है, जनाब यह छत्रछाया आपकी है हम पर खट्टी-मिट्ठी।”
”हां, अब आई अकल।”
”अच्छा तनु, अगर ये नीम का पेड़ होता तो क्या तुन निबोली का अचार डालतीं?”
”हां डालती, ‘प्रणव छाप निबोली अचार’। डालती और तुम्हें ही खिलाती, समझे! ”
”प्रणव, तुमसेअलग हो यादों की निबोली ही तो समेट रही हूं…”
अगली दोपहर फिर तोते मेरे बगीचे के अमरूद कच्चे ही गिराकर उड़ गए। मैं अमरूद उठा अंदर आने लगी अनायास ही नजर सामनेवाली बेंच पर चली गई। आज फिर वही लड़का और लड़की वहां आकर बैठे थे। मैंने घड़ी पर नजर डाली-एक बजकर तीस मिनट। ओ…लंच टाइम!मैं कमरे में आ गई। रेडियो ऑन किया, दर्द-भरा एक अहसास बहने लगा-
हमने देखी है इन आंखों की महकती खुशबू
हाथ से छूके इस रिश्तों का इलजाम ना दो
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो-
मैं चाहकर भी आज खिड़की बंद नहीं कर पाई।
आज शनिवार, सेकंड शनिवार। विनय का ऑफ होता है और मेरा फुलडे वर्किंग डे। विनय का सब काम आराम से करने का दिन। विनय सुबह गार्डन ठीक करते हैं, फिर अखबार और बार-बार चाय। एक बजे लंच। किचन समेट मैं कमरे में आई रेडियो ऑन किया और खिड़की खोली।
पेड़ के नीचे वही लड़का-लड़की आकर बैठे थे। विनय ने मुझे टोका, ”क्या तनु, भरी दोपहरी में खिड़की से गरम लपट आएगी।”
मैं अपनी धुन में थी, बोल पड़ी, ”नहीं विनय, पिछले कुछ दिनों से मैं जब भी ये खिड़की खोलती हूं, एक पॉजिटिव एनर्जी कमरे में आती है। एक ऐसा अहसास जो दोपहर की गर्मी को छांट देते है। और गाने सुनते दोपहर कट जाती है।”
”अच्छा!”विनय मुस्करा उठे। ”तुम औरतें भी ना, पॉजिटिव एनर्जी के रास्ते ढूंढ ही लेती हो, जैसे चाय के प्याले, रेडियो के बोर करते गानों में…”
”आप भी ना…बस हर बात का मजाक बना देते हैं।”
विनय उठकर मेरे पास आ गए। हाथ में चाय का प्याला देखकर बोले, ”अच्छा!तो दफ्तरवालों की तरह घरवालियां भी लंच टाइम में चाय पी लेती हैं। पॉजिटिव एनर्जी वाली।” विनय भी खिड़की के पास मेरे साथ आ खड़े हुए थे।
”ऐ…तनु, देखो, तुम्हारे बैंगनी फूलोंवाले पेड़ के नीचे प्यार की कोंपलें फूटने लगी हैं।” ये चहककर बोले।
”हां, आजकल यह जोड़ा रोज ही आकर यहां बैठता है।”
”तो पॉजिटिव एनर्जी यहीं से आती है!” विनय मुस्करा उठे।
मैं खिसिया गई जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो।
”आप भी ना…”
विनय ने मुझे बांहों में समेटते हुए, आंखें मूंदकर कहा, ”सदियों से एक ही लड़का है, एक ही लड़की है, एक ही पेड़ है। दोनों वही मिलते हैं, बस, नाम बदल जाते हैं और फूलों के रंग भी। कहानी वही होती है। किस्से वही होते हैं। पेड़ कभी-कभी गुलमोहर का होता है या बैंगनी फूलोंवाला, क्या फर्क पड़ता है। द एंड सभी का एक-सा ही…”
विनय खिड़की बंद कर लेट गए। पास ही के तकिये पर करवट बदलते हुए मैं महसूस कर रही थी। विनय के अंदर भी यादों का कोई पन्ना खुल गया है शायद। तो क्या, बैंगनी फूलोंवाले पेड़ ने इनके अंदर भी स्मृतियों के विस्मृत होते किसी पन्ने की धूल झाड़ दी ? मेरे आम के पेड़ का राज समझते हुए इन्हें कोई गुलमोहर याद आ गया। रेडियो ऑन किया…शुरू हो रही थी गुलजार साहब की एक नई नज्म :
मैं कायनात में, सय्यारों से भटकता था
धुएं में, धूल में उलझी हुई किरण की तरह
मैं इस जमीं पे भटकता रहा हूं सदियों तक
गिरा है वक्त से कट के जो लम्हा, उसकी तरह
मैंने उठकर देखा, खिड़की से, जोड़ा चला गया था। शायद कल फिर मिलने का वादा लेकर।
- डा. स्वाति तिवारी
जन्म : धार (मध्यप्रदेश)
शिक्षा : एम.एस.सी., एल.एल.बी., एम.फिल, पी.एच.डी
शोध कार्य :
महिलाओं पर पारिवारिक अत्याचार एवं परामार्श केन्द्रों की भूमिका
प्राथमिक शिक्षा के लोकव्यापीकरण में राजीव गांधी शिक्षा मिशन की भूमिका
अकेले होते लोग – वृद्धावस्था पर मनोवैज्ञानिक दस्तावेज
सवाल आज भी जिन्दा हैं : भोपाल गैस त्रासदी एवं स्त्रियों की सामाजिक समस्याएं (प्रकाशनाधीन)
रचनाकर्म :
मध्यप्रदेश और देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, व्यंग्य, समीक्षा, रिपोर्ताज, यात्रा-संस्मरण, कविताओं आदि का नियमित प्रकाशन
आकाशवाणी, दूरदर्शन और निजी टी.वी. चैनलों पर रचनाओं का प्रसारण-पटकथा लेखन
विशेष :
मध्यप्रदेश की कलाजगत हस्ती कलागुरू विष्णु चिंचालकर पर निर्मित फिल्म की पटकथा-लेखन, सम्पादन और सूत्रधार
फिल्म निर्माण: इन्दौर स्थित परिवार परामर्श केन्द्रों पर आधारित लघु फिल्म “घरौंदा ना टूटे’ (निर्माण, सम्पादन और स्वर)
प्रकाशित कृतियॉ :-
कहानी-संग्रह :
“क्या मैंने गुनाह किया’, ”विशवास टूटा तो टूटा’, “हथेली पर उकेरी कहानियां’ “छ जमा तीन”, “मुडती है यूं जिन्दगी, ”मैं हारी नहीं’, “जमीन अपनी-अपनी’, “बैगनी फूलों वाला पेड”, स्वाति तिवारी की चुनिंदा कहानियां
अन्य महत्वपूर्ण प्रकाशन :
वृद्धावस्था के मनोवैज्ञानिक वि¶लेषण पर केन्द्रित दस्तावेज – “अकेले होते लोग’
”महिलाओं के कानून से संबंधित महत्वपूर्ण पुस्तक “मैं औरत हूं मेरी कौन सुनेगा’,
व्यक्तित्व विकास पर केन्द्रित पुस्तक “सफलता के लिए’
देश के जाने-माने पत्रकार स्व.प्रभाष जोशी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित पुस्तक “शब्दों का दरवेश” (महामहिम उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी द्वारा 16 जुलाई 2011 को विमोचित)
प्रकाशनाधीन :
सवाल आज भी जिन्दा है (भोपाल गैस त्रासदी और स्त्री विमर्श)
लोक परम्पराओं में विज्ञान (माधवराव सप्रे संग्रहालय द्वारा प्रदत्त प्रोजेक्ट)
ब्राहृ कमल एक प्रेमकथा (उपन्यास)
सम्पादन (1996 से 2004 तक) :
सुरभि (दैनिक चौथा संसार),
घरबार (दैनिक चेतना)
चर्चित स्तंभ लेखन (वर्ष 96 से 2006 तक) :
हमारे आस पास (दैनिक भास्कर),
महिलाएं और कानून (दैनिक फ्रीप्रेस, अंग्रेजी),
आखिरी बात (चौथा संसार),
आठवां कॉलम एवं अपनी बात (चेतना),
सम्मान और पुरस्कार :
“अकेले होते लोग’ पुस्तक (वर्ष 2008-09) के मौलिक लेखन पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग नई दिल्ली द्वारा 80 हजार रुपये का राष्ट्रीय पुरस्कार
“स्वाति तिवारी की चुनिन्दा कहानियाँ’ पर मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा 22/01/12 को वागेशरी सम्मान 2010 (छत्तीसगढ़ के महामहिम राज्यपाल के कर कमलों द्वारा)
“बैंगनी फूलोंवाला पेड़’ कहानी संग्रह पर 02 अक्टूबर, 11 को प्रकाश कुमारी हरकावत महिला लेखन पुरस्कार (मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल के कर कमलों द्वारा)
देश की शिशार्स्थ पत्रिका “द संडे इंडियन’ द्वारा देश की चयनित 21वीं सदी की 111 लेखिकाओं में प्रमुखता से शामिल
“अभिनव शब्द शिल्पी अलंकरण”, 2012 सांस्कृतिक संस्था अभिनव कला परिषद, भोपाल द्वारा
लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार पं. रामनारायण शास्त्री स्मृति कथा पुरस्कार
जाने-माने रिपोर्टर स्व. गोपीकृष्ण गुप्ता स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार (श्रेष्ठ रिपोर्टिंग के लिए)
शब्द साधिका सम्मान (पत्रकारिता पुरस्कार) निर्मलादेवी स्मृति साहित्य सम्मान, गाजियाबाद (उत्तरप्रदेश)
पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में अनुपम उपलब्धियों के लिए “स्व. माधवराव सिंधिया प्रतिष्ठा” सम्मान
हिन्दी प्रचार समिति, जहीराबाद (आन्ध्रप्रदेश) द्वारा सेवारत्न की मानद उपाधि
पं. आशा कुमार त्रिवेदी स्मृति मालवा-भूषण सम्मान
मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा स्थापित देवकीनंदन साहित्य सम्मान
अंबिकाप्रसाद दिव्य रजत सम्मान
भारतीय दलित साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश का सावित्रीबाई फूले साहित्य रत्न सम्मान
विशेष :
कुरुक्षेत्र वि.वि. हिमाचल प्रदेश और देवी अहिल्या वि.वि. इन्दौर, वि.वि.चैन्नई, जवाहरलाल नेहरू वि.वि. नई दिल्ली में कहानियों पर शोध कार्य।
मैसूर में 02 से 04 अक्टूबर, 2011 तक राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग एवं मैसूर विश्वविद्यालय द्वारा
“सुशासन और मानव अधिकार” पर आयोजित तीन दिवसीय सेमीनार में शोध पत्र का वाचन।
माण्डव में 5 से 7 नवम्बर, 2011 को देश के शिरसस्थ कथाकारों के संगमन 17 में भागीदारी।
संस्थापक-अध्यक्ष, इन्दौर लेखिका संघ, इन्दौर।
वुमन राइटर्स गिल्ड आफ इंडिया (दिल्ली लेखिका संघ) की सचिव (वर्ष 07 से 09)
इंडिया वुमन प्रेस कार्प, नई दिल्ली की आजीवन सदस्य
सम्प्रति : मध्यप्रदेश शासन में जनसम्पर्क विभाग में अधिकारी (राज्य शासन के मुखपत्र मध्यप्रदेश संदेश में सहयोगी सम्पादक)
सम्पर्क - चार इमली, भोपाल – 462016 (मध्यप्रदेश – भारत)