बस एक बार

बस एक बार
कुछ ऐसा हो जाए
समय बहने लगे
विपरीत दिशा में
फिर खेलूं
अठखेलियाँ बचपन की
माता-पिता की गोद में
मचल कर करूँ
एक बार फिर जिद
चाँद को पाने की

बस एक बार
आसमान में उड़ती
पतंगों की डोर बनूं
तनूं ऐसे कि पतंग
न फटे कोई
न कटे कोई
लहराए परचम की तरह
आकाश में
सदा सदा के लिए

बस एक बार
फिर
दस्तक दूँ
मन के द्वार पर
खुल जाएँ कपाट मन के
बहने दूं वह सब
जो जमा हुआ है
मन की तलहटी में
काई की तरह

बस एक बार
कुछ ऐसा हो जाए
बनूं पंछी
पंख खोले
भरूं उड़ान
तोड़ दूं इस भ्रम को
कि क्षितिज
को पा नहीं सकते।

 

- आनन्द बाला शर्मा

बी.एस.सी,एम.ए, बी.एड

कहानी, कविता, लेख,संस्मरण आदि

नारी चेतना के स्वर,एकता की मिसाल,
राष्ट्रीय संकलन व देश विदेश की पत्र पत्रिकाओं
में रचनाओं का प्रकाशन

साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ाव,शिक्षण क्षेत्र
में सेवानिवृत्ति के पश्चात अध्ययन एवं साहित्य
साधना में संलग्न
जमशेदपुर_ 11 झारखण्ड

 

Leave a Reply