तुम्हारा यह कहना की तुम्हे कोई फ़र्क नहीं पड़ता
इस सच को और पुष्ट कर देता है कि
……तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
दिन की पहली चाय का पहला घूँट तुम ले लो -
मेरे इस इंतज़ार से
….. तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
तुमसे अकारण ही हुई बहस से -
माथे पर उभरीं उन सिल्वटोंसे
…..तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
मंदिर की सीढियां चढ़ते हुए , दाहिना पैर
साथ में चौखट पर रखना है इस बात से
……. तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
इस तरह ..रोज़मर्रा के जीवन में
घटने वाली हर छोटी बड़ी बातसे तुम्हे फ़र्क पड़ता है !
फिर जीवन के अहम् निर्णयों में -
कैसे मान लूं …की तुम्हे फ़र्क नहीं पड़ता ……
यह ‘फ़र्क पड़ना’ ही तो वह गारा मिटटी है जो
रिश्तों की हर संध को भर
उसे मज़बूत बनाता है …..
वह बेल है जो उस रिश्ते पर लिपटकर
उसे खूबसूरत बनाती है
छोटी छोटी खुशियाँ उसपर खिलकर
उस रिश्ते को सम्पूर्ण बनाती हैं
और ‘फ़र्क पड़ना’तो वह नींव है
जो जितनी गहरी ,
उतने ही रिश्ते मज़बूती और ऊँचाइयां पाते हैं …!!!!
-सरस दरबारी
मुंबई विश्व विद्यालय से राजनितिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री l
विद्यार्थी जीवन में कई कवितायेँ लिखीं और अंतर महाविद्यालय कहानी लेखन, कविता लेखन प्रतियोगिताओ में कई पदक और ट्राफी प्राप्त कीं .
प्रखर साहित्यिक पत्रिका ‘दीर्घा’ में ‘विशेष फोकस ‘ के अंतर्गत ११ कविताओं का प्रकाशन.
नवभारत टाइम्स में कविताओं का प्रकाशन
आकाशवाणी मुंबई से ‘हिंदी युववाणी ‘ व् मुंबई दूरदर्शन से ‘हिंदी युवदर्शन’ का सञ्चालन
‘फिल्म्स डिविज़न ऑफ़ इंडिया’ के पेनल पर ‘अप्रूव्ड वोईस’
फिर विवाहोपरांत पूर्णविराम
३० साल बाद, फेब्ररी २०१२ से, ब्लॉग की दुनिया में प्रवेश और फिर लेखन की एक नए सिरे से शुरुआत.
रश्मि प्रभा, अवं हिंदी युग्म प्रकाशन का काव्य संग्रह “शब्दों के अरण्य में ” अवं सत्यम शिवम् का कविता संग्रह “मेरे बाद ” ( उत्कर्ष प्रकाशन ) की समीक्षा