भंवर की ओर बढ़ती नांव
बढ़ी रफ़्तार से चलती
हुआ आभास ज्यों मुझको
मैंने पतवार मोड़ ली
बढ़ा था आ रहा तूफ़ान
घटाएं थी बड़ी घनघोर
भरोसा कर के आँखों पर
मैंने पतवार मोड़ ली
मंजिल हो गयी अब दूर
सफ़र भी हो गया लंबा
है चहरे पर सूकून तब भी
की, मैंने पतवार मोड़ ली
प्रलोभन हैं बड़े भीषण
जीवन के हर पग पर
है बचना अपने हाथों मैं
की जैसे हो, पतवार थाम ली
- माधवी सिंह , अमेरिका