नव वर्ष

नव वर्ष
तुम आओ
अब सहा नहीं जाता
अब बीतना ही होगा मुझे
देखते हो न
घायल मेरा तन
मेरे अपनों ने ही दी है
ये निशानियाँ मुझे
ये घाव
लड़कियों की चीख के हैं
जिनकी मासूम हथेली पर
हैवानियत के अंगारे रख दिए गए
ये फफोला
उस आग का है
जिसमे ऋषियों की ये धरती जल रही है
ये काला निशान
माँ भारती के चेहरे की
वो कालिख है
जो उसके ही सपूतों ने
लगाई है उसके चेहरे पर
आंसुओं का जो दरिया
मेरे पास से बह रहा है
ये उन बूढ़े माँ -बाप का दर्द है
जिनके सपूत आने का कह कर
कभी वापस न आये

मित्र

मै दर्द के धुंएँ

और काँटों भरी राहों से

उम्मीद के कुछ बीज बचा पाया हूँ

तुम्हे सौपता हूँ

इसे जरुर बो देना

शायद उग सके मानवता का एक वृक्ष

और लग सके उसपर

शांति ,मुस्कान ,न्याय और प्रेम का फल
नव वर्ष

तुम आओ

पर साथ लाना

जुगनुओं भरा आँगन

निडर एक राह

और नारी होने का सम्मान

जो मै न ला सका

ताकि नव वर्ष हर्ष वर्ष हो सके

 

-रचना श्रीवास्तव

प्रकाशित कृतियाँ: विभिन्न संग्रहों में कहानियाँ ,कवितायेँ ,हाइकु ,कहानियां ,लघुकथाएं ,प्रकाशित , भारत और अमेरिका के विभिन पत्र पत्रिकाओं में निरन्तर लेखन

सम्मान: हिन्द युग्म यूनीकवि सम्मान, कथा महोत्सव (अभिव्यक्ति )में कहानी को सम्मान

सम्प्रति: स्वतन्त्र पत्रकारिता

संपर्क: अमेरिका

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