तुम हो तो मैं हूँ
तुम्हारी ज़मीं ना होती
कहाँ स्थिर होते
मेरे अस्तित्व के पाँव।
तुम हो तो
घुमड़ती है मेरे नैनों में
काजल की घटाएं
जो तुम ना होते
तो टपकती
ओस दिन-रात
मेरी आँखों के आसमाँ से।
तुम हो तो
मेरे होंठों की देहरी पर
जुगजुगाती हैं दीपों सी बातें
जो तुम ना होते तो
मौन रहते मेरे शुष्क होंठ
गूँगी शिलाओं से।
तुम हो तो
मेरा पगला भ्रम समझता है
मेरे चेहरे को चाँद सरीखा
इतराते हैं काले कुंचित केश
मेरी पेशानी पे
जो तुम ना होते तो
नागों सी डसतीं मेरी लटें
योगी की जटाओं सी।
तुम हो तो
रह-रह सरसता है
मेरा मन
पल-पल उत्सव है
मेरा जीवन
जो तुम ना होते तो
पूछतीं मेरी सांसें मुझसे
मेरे जीने की वजह ।
- कृष्णा वर्मा
शिक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रकाशन: “अम्बर बाँचे पाती” (मेरा पहला हाइकु संग्रह) प्रकाशित।
यादों के पाखी (हाइकु संग्रह) अलसाई चाँदनी (सेदोका संग्रह) उजास साथ रखना (चोका संग्रह) आधी आबादी का आकाश (हाइकु संग्रह) संकलनओं में अन्य रचनाकारों के साथ मेरी रचनाएं। चेतना, गर्भनाल, सादर इण्डिया, नेवा: हाइकु, शोध दिशा, हिन्दी-टाइम्स पत्र-पत्रिकाओं एवं नेट : हिन्दी हाइकु, त्रिवेणी, साहित्य कुंज नेट (वेब पत्रिका) में हाइकु, ताँका, चोका, सेदोका, माहिया, कविताएँ एवं लघुकथाओं का प्रकाशन।
पुरस्कार: विश्व हिन्दी संस्थान की अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त।
विशेष: हिन्दी राइटर्स गिल्ड (टोरोंटो) की सदस्या एवं परिचालन निदेशिका।
डी.एल.एफ सिटी-गुड़गाँव (भारत) एवं कनाड़ा मे शिक्षण।
सम्प्रति: टोरोंटो (कनाडा) में निवास। आजकल स्वतंत्र लेखन।
सम्पर्क: रिचमण्डहिल, ओंटेरियो, कनाडा