तुम्हारे जाने के बाद

 

तुम गढ़ते रहे जिंदगी
मैं गढ़ती रही कविता
तुम बनाते रहे पांवो में छाले
शब्दों के समूह बनाती रही मैं
भावनाओं की स्याही से ……
तुम हटाते रहे राह के कांटें
ताकि , चल सकूँ में निर्बाध
तुमने कभी कुछ कहा नहीं
मैं सोचती रही तुममे प्यार नहीं …..
पर तुम तो भरे हुए थे लबालब
जान ही नहीं पाई -
तुम शब्द नही दे रहे थे
किये जा रहे थे अपना कर्म
मैं भागती रही शब्दों की चकाचोंध के पीछे
असल में तुम्हारे प्यार को पढ़ने का
नही सलीका मेरे पास ..
जब आया तो जान गई सब
तुम्हे शब्दों की ज़रूरत नहीं थी
पर मुझे सलीके की ज़रूरत रही
अब सब जान गई हूँ
तुम्हारे जाने के बाद ………

 

- मधु सक्सेना

लेखन -कहानी ,कविता ,व्यंग्य और समीक्षा ।
” मन माटी के अंकुर ” ( काव्य सन्ग्रह ) प्रकाशित ।
तीन सम्मान 
साहित्यिक संस्थाओं की स्थापना ।
स्थाई निवास भोपाल ।

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