१.
गोदावरी और आसना नदी की गोद में बसा ऐतिहासिक स्थान हैं, महाराष्ट्र का नांदेड़ शहर ! यहाँ के चौक, विभिन्न महापुरुषों के पुतले शहर में चार चाँद लगाने का काम करते हैं | शहर के मुख्य स्टेशन के बाहर आते ही नजर पडती हैं, महापुरुष डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर के भव्य पुतले पर तथा दायीं ओर हैं शहर का प्रसिद्ध होटल ‘तांडा’ और उसकी दीवार पर विज्ञापन के लिए लगा हैं, भव्य टेलिव्हिजन | जिस पर चौबीसो घण्टे शहर के विज्ञापन प्रसारित होते रहते हैं | रास्ते पर कतारबद्द ऑटो, दूकान, होटल, लोजिंग आदि का सुंदर दृश्य दिखायी पड़ता हैं | ईसी स्टेशन पर रोज सुबह जुबेदा अपने काम से आती हैं | सुबह १०:३० मिनट पर निकलने वाली नांदेड़ से मुंबई की ओर जानेवाली तपोवन एक्प्रेस में सवार हो जाती हैं | श्याम ०६:०० बजे मुबई से नांदेड़ की ओर लौटने वाली उसी दूसरी ट्रेन में वापस लौट आती हैं | यह उसका रोज का काम था |
२०१८ के दिसंबर की ठण्ड से भरी वह एक श्याम थी | जुबेदा को उस दिन बहुत भूख लग रही थी | रोज की तरह वह सुबह तपोवन एक्सप्रेस में गई और उसी लौटने वाली ट्रेन से वापस आयी थी | उस दिन अपनी दिनभर की कमाई को उसने अपने छोटे से पॉकेट में डालकर अपने ब्लाउज में रख लिया था | स्टेशन से बाहर निकलते ही जुबेदा भूख के मारे होटल तांडा में घुस गई | जल्दी-जल्दी में उसने स्पेशल बिरयानी और चिकन ६५ ऑर्डर किया | कुछ ही पलों में उसका गरमा-गरम ऑर्डर सामने था | अबतक भूख की नकेल कसने वाली जुबेदा ने उसे खुला छोड़ दिया था | वह भूखे सांड जैसा लजीज खाने पर टूट पड़ा था | वह मुट्ठी में भर-भर कर सामने रखा खाना मुह के भीतर धकेल रही थी | खाते समय उसके मुह से चप-चप की आवाज आ रही थी | होटल में बैठे सभी लोग उसकी ओर आँखे फाड़-फाड़ कर देख रहे थे | मानो कोई जबर्दस्त फ़िल्म चल रही हो और उस फ़िल्म में काम करनेवला किरदार बरसों से भूखा लग रहा था | कोई भी उस दृश्य को मिस नहीं करना चाहता था | तबियत खराब होंने के कारण कल से उसने कुछ खाया नहीं था | दो दिन की भूख उस दिन टेबल पर पड़े खाने पर टूट पड़ी थी | देखते ही देखते उसने स्पेशल बिरयानी को सफाचट कर दिया था | और दूसरी बिरयानी भी खत्म होने आ रही थी | बीच-बीच में वह ६५ के चिकन का लजीज टुकड़ा मजे लेकर खा रही थी | जब कुछ उसका पेट भरा-सा हो गया था तब उसने ग्लास भर पानी पिया और हलकी डकार दी | अभी वह चिकन का टुकड़ा खा ही रही थी कि उसके टेबल के सामने वाली कुर्सी पर कोई आकर बैठ गया | जुबेदा का ध्यान तो सिर्फ खाने में था | उस वक्त वह सिर्फ अपने पेट की भूख मिटाना चाहती थी | आखिर वह पेट के लिए ही तो कमाती थी |
“जुबेदा कैसी हो ? आज जल्दी आ गयी ! “
जुबेदा के कानों में जाने पहचाने शब्द पड़ते ही उसने मन ही मन सोचा इतने प्यार से पुकारने वाला इस दुनिया में तो सिर्फ एक ही तो हैं | उसने अपनी गर्दन को उपर की ओर किया | मुस्कराते हुए सामनेवाले से कहा, “ फैजल तू हैं ? हां ..आज ट्रेन जल्दी आ गयी | आज कोई ट्रेन, बीच में कोर्सिंग नहीं हुई | इसीलिए…. वरना तू तो जनता ही हैं, ट्रेन अकसर घंटा भर तो लेट हो ही जाती हैं | पर अगले साल से ऐसा नहीं होगा क्योंकि डबल ट्रेक हो रहा हैं ना .. तो क्रोसिंग का झंझट ही नहीं होगा | कैसा हैं तू ? बहुत दिनों के बाद मैं तुझे देख रही हूँ |”
“ बहुत दिनों से नहीं जुबेदा सिर्फ पाँच ही तो दिन हुये हैं |” प्यार से फैजल ने उत्तर दिया था |
“सही कहा फैजल तूने… लगता हैं, अब मुझे तेरी आदत-सी हो गयी हैं | पाँच दिन भी अब मुझे बहुत दिन के जैसे लगते हैं यार ..!”
“जुबेदा, मैं हमेशा तेरे से मिलने आता रहूँगा | तू फिकर नको करू रे | और मैं ये क्या देख रहा हूँ , आज तेरा मुह इतना उतरा हुआ क्यों हैं ? बीमार हैं, कुछ परेशानी हैं तेरे को ?….बोलना !” फैजल जुबेदा को अपना लगता था | इसलिए वह निसंकोच हो कर अपने दिल की बात उसके सामने किया करती थी | उस समय वह कुछ देर शांत रही और फिर उसकी जबान से कुछ थके-थके से शब्द फुट पड़े |
“ऐसा कुछ भी नहीं रे फैजल ! तू मेरी इतनी फिकर नको करता जा | फिर भी मैं तुझे बोलती | बस रोज की बात हैं | पर आज…चल जाने देना यार…छोड़ दें | तू सुना अपनी |”
फैजल जुबेदा के मन की बात जान गया था | उसे लगा कि जुबेदा अपने दिल की बात करती तो हैं पर खुलकर नहीं करती हैं | उसने महसूस किया कि वह कुछ छिपा रही हैं, जिस बोझ से वह दबी जा रही हैं | उस दिन वह सोच कर ही आया था कि जुबेदा जो अपने दिल में छिपा रही हैं; उसे बाहर निकालना ही होगा | उसने अपनी जेब से शराब की बोतल बाहर निकाली और टेबल पर हलके से पटक दी | उसे देखते ही जुबेदा ने कहा,
“यह क्या हैं जुबेद ? शराब की बोतल और वह भी मेरे सामने | तू पीनेवाला हैं क्या ?” फैजल ने इस पर जवाब देते हुए कहा, “ मैं नहीं पी रहा हूँ रे | आज मैं तेरे लिए लाया हूँ | मुझे पता हैं, तू शराब के नाम से नफरत करती हैं | पर आज मेरे लिए; तेरे इस दोस्त के लिए; तुझे पीना ही होगा |”
जुबेदा मना करती रही | उसने अपने जीवन में कभी शराब की बोतल को छुआ तक नहीं था | लेकिन उस दिन अपने एकलौते पुरुष दोस्त जो उसका अकसर ख्याल रखता हैं | उसकी चिंता करता हैं | उसके आग्रह पर उसने उस दिन शराब को मुह से लगा लिया और पूरी बोतल खाली कर दी | कुछ देर दोनों शांत बैठे रहे | फैजल जुबेदा की ओर एक टक देखे जा रहा था | वह इंतजार कर रहा था कि वह अपने भीतर की बात बाहर कब निकालेगी | शराब का नशा जुबेदा के तन और मन-मस्तिष्क पर चढ़ चूका था | अबतक शांत बैठी जुबेदा की आँखों में आँसू भर आये थे | भरी आँखों से उसके गले से होते हुए जबान से भीतर की बात बाहर निकल रही थी |
“ फैजल, तू मेरा सबसे अच्छा और सच्चा दोस्त हैं | इस दुनिया में अगर मैं किसी पर विश्वास करती हूँ तो वह तू फैजल | आज मैं तुझे अपने दिल की बात बताने जा रही हूँ | फैजल तुझे हिजड़ा होने का दुःख नहीं पता | क्या होता हैं, हिजड़ा बनकर जीवन जीना | मैं औरत भी नहीं और मर्द भी नहीं हूँ | ना मैं बच्चा पैदा कर सकती हूँ और ना कोई मर्द मेरे से शादी कर सकता हैं | अपनी जिन्दगी तो अकेली हैं रे | मैं हिजड़ा हूँ देखकर आज से दस साल पहले मेरे माँ-बाप ने लोकलाज के कारण मुझे घर से बाहर निकाल दिया | जिस गली मोहल्ले में मैं बचपन में खेला करती थी | उन सब ने एक दिन मुझे अपनी गली से भी बाहर कर दिया | तब मैंने अकेले जीवन जीने का फैसला कर लिया था | उस वक्त मेरे मन में आत्महत्या के विचार आये थे | पर मैंने हार नहीं मानी, मैंने सोच लिया था | मैं भी आम इन्सान की तरह जी सकती हूँ और जीकर बताउंगी | काम माँगने गयी तो किसी ने काम नहीं दिया | तब मैंने ताली बजाकर रूपये माँगने का फैसला किया | और तब से मैं अपने हाथ की उंगलियों में दस-दस के नोट फंसाकर कर ताली बजा-बजाकर ट्रेन में, बस में, भीड़ में जहाँ भी हो सकता हैं, वहाँ-वहाँ लोगों से रूपये माँगना शुरू कर दिया था | शुरू-शुरू में जब लोग हिजड़ा-छक्का कहते तब बहुत बुरा लगता था | पर अब कुछ नहीं लगता | वह तो हमारी पहचान हैं, इसीलिए मैंने उसे स्वीकार कर लिया | पर जब पुरानी यादे मुझे सताती हैं और भविष्य की चिंता मेरे सर पर तांडव करती हैं ना, तब मुझे बहुत दर्द होता हैं | मैं हिजड़ा हूँ | इसमें मेरा क्या दोष | मुझे औरत नहीं, मर्द पसंद हैं | इसमें मेरी क्या गलती | भगवान ने मुझे औरत बनाते-बनाते अधूरा छोड़ दिया | फैजल तुझे सच बताऊं क्या मैं आम औरत के जैसा मैं किसी मर्द के साथ निकाह करना चाहती हूँ | निकाह करके मैं भी घर बसाना चाहती हूँ | मैं भी सपने देखती हूँ कि मेरे सपने में राजकुमार आता हैं और मुझे सजी हुई डोली में बिठा कर अपने साथ ले जाता हैं | जब भी किसी की शादी देखती हूँ ना तब मुझे लगता हैं कि एक दिन मेरी भी शादी होगी | मैं दुल्हन के कपड़े में सजी-धजी बैठी हूँ और दूल्हा घोड़ी पर संवार हो बारात के साथ आ रहा हैं | उस वक्त मेरे और दुल्हे के घर-परिवार और रिश्तेदार सभी लोग आये हैं | खूब नाच-गाना हो रहा हैं | डीडीएलजे का वह गाना “डोली सज़ा के रखना” वाला गाना चल रहा हैं | कितना सुंदर | और आखरी में “बाबुल की दुआयें लेती जा” गाना चल रहा हैं | बिदाई के समय मेरा बापू रो रहा हैं | दूल्हा मुझे डोली में बिठाकर ले जा रहा हैं | यह सबकुछ सुनने में कितना अच्छा लगता हैं ना !”
फैजल जुबेदा की बात सुन रहा था | उसने उसे अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया था | फैजल आँखे भर आयी थी | जुबेदा की दर्द भरी दास्ताँ और उसके सपने को सुनकर | जुबेदा का हाथ पकड़ते हुए तब उसने कहा था |
“जुबेदा मैं तेरी सारी इच्छा पूरी करूंगा | मैं तुझसे प्यार करता हूँ | जुबेदा अगर मैं तेरे सपनों का राजकुमार हूँ तो मैं जिस समाज, परिवार ने स्त्री और पुरुषों के लिए नियम बनायें हैं | मैं उन्हीं के सामने तुझसे शादी करूँगा | मैं तुझे जीवन भर सुखी रखूँगा | आज से तू अपने आप को दुःखी मत करना | मैं हूँ तेरे साथ | यह अंगूठी ख़ास मैं तेरे लिए बनवा कर लाया हूँ | मैं बस तेरे हाँ का इन्तजार कर रहा था | मुझे पता हैं कि तू भी मुझसे प्यार करती हैं और मुझ से शादी कर के खुश रहना चाहती हैं |”
फैजल ने जुबेदा को अंगूठी पहना दी | जुबेदा भी ईसी अवसर का इंतजार कर रही थी | वह उस दिन बहुत खुश थी | उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था | वह अपनी नजरों के सामने अपने सपने को पूरा होते देख रही थी | उसके सारे सपने पुरे होने वाले थे | उसे उसके सपनों का राजकुमार मिलने वाला था | उस दिन फैजल ने ही बिल के पैसे दिए | वह अपने साथ अपनी बाइक पर बिठाकर जुबेदा को उसके घर छोड़ने के लीये गया था | उस रात फैजल और जुबेदा एक हो गये थे | दिसंबर की ठंड में दोनों ने एक होने का सुखद आनंद का अनुभव किया था | उस रात के बात ऐसी कई राते आयी और बीतती रही | दोनों जीवन सुख के आनंद में खोये हुए थे | उस समय जुबेदा इस धरती पर सबसे ज्यादा अपने आप को खुश नसीब समझ रही थी |
२.
“जुबेदा, मैं कहती हूँ उस फैजल से दूर रहना | मुझे वह लड़का अच्छा नहीं लगता | मुझे लगता हैं, वह तुझे धोखा दे रहा हैं | भला हिजड़े से भी इतना प्यार कोई करता हैं क्या और तू कह रही हैं कि तुम दोनों शादी करनेवाले हो | जुबेदा-जुबेदा संभल जा वह तुझे हसीन सपने दिखा रहा हैं | मैं कहे दे रही हूँ, इस नशे से अभी जाग जा वरना आगे बहुत पछतायेगी |”
जुबेदा ने सबकुछ शांति से सुना | और बड़े ही शांत मन से अपने हिजड़े सखी हमीदा को जवाब देते हुए कहा, “मुझे पता हैं हमीदा, तुझे हमारे रिश्ते से जलन हो रही हैं | मैं यह भी जानती हूँ कि पहले तू उसके पीछे लगा करती थी | वह तुझे पसंद था | उसने मुझे सबकुछ बता दिया हैं | उसने तुझे इंकार कर दिया इसीलिए तू मुझे उससे अलग करना चाहती हैं | तुझे मेरी ख़ुशी देखीं नहीं जाती हैं ना | उसने वादा किया हैं वह मेरे सारे सपने पुरे करेगा | मुझे जीवन भर सुखी रखेगा | मुझ से शादी करेगा | और मैंने कई रातों से अपना बिस्तर भी उसके साथ साझा किया हैं | वह पहला मर्द हैं जो मेरे बिस्तर पर साझा हुआ हैं |”
हमीदा से यह सबकुछ सुनकर रहा नहीं गया | उसने जुबेदा से आखिरी बार समझाते हुए कहा,
“ जुबेदा, ऐसी बात नहीं हैं | मैं तुझ से जलती नहीं | माना की वह मुझे पहले पसंद था | पर जब मुझे उसका बर्ताव कुछ ठीक नहीं लगा तो मैंने ही उससे दूरी बना ली थी | यह बात तो उसने तुझसे नहीं बतायी होगी हैं ना ? जुबेदा तुझे सुखी और खुश देख कर मुझसे अधिक ख़ुशी और किसको हो सकती हैं | आखिर मैं भी तो हिजड़ा हूँ | मैं तेरे दर्द,पीड़ा, सपनों को अच्छी तरह जानती हूँ | अगर तेरी यही इच्छा हैं | तो मैं तुझसे ऐसी बात फिर नहीं करूंगी | तू खुश रहना | बस, यही दुआ हैं, उपरवाले से | अच्छा चलती हूँ | मुझे बहुत देर हो गई |”
हमीदा अपने दिल की बात जुबेदा के सामने कर के चली गयी | उसके जाते ही उस दिन श्याम को ख़ुशी-ख़ुशी फैजल हाथ में पेडे से भरा हुआ डिब्बा लेकर जुबेदा के घर आया था | उसने जुबेदा को अपनी हाथों से पेड़ा खिलाया और अपनी ख़ुशी का राज भी बताया था | वह मिठाई उसके नौकरी लगने की ख़ुशी में थी | अबतक फैजल बेरोजगार था | कठिन स्थितयों से जूझ रहा था | लेकिन अब उसके सारे सपने पूरे होनेवाले थे | फैजल ने जुबेदा से बताया था कि उसे हैदराबाद के किसी दफ्तर में नौकरी लग चुकी हैं | उसकी ख़ुशी को देखकर जुबेदा भी ख़ुशी से फुले नहीं समा रही थी | फैजल ने साफ कह दिया था कि,
“जुबेदा आज से तुझे ताली बजाकर रूपये माँगने की जरूरत नहीं | अब मुझे नौकरी लग गई हैं | अब मैं कमाकर लाऊंगा और तू घर बैठकर खायेगी | तू घर सम्हालेगी और मैं दफ्तर | तू अपने घर की रानी होगी और मैं राजा | दोनों ख़ुशी से जीवन बितायेंगे | नौकरी पर जाते ही मैं लोन उठाऊंगा और एक घर बनाऊंगा | अपने सपनों का घर | जहाँ तू और मैं दूसरा कोई नहीं होगा | पर ….|”
अबतक फैजल ख़ुशी से अपनी बात जुबेदा के सामने रख रहा था | ‘पर’….. कहते ही नाराज हो गया | जुबेदा के पूछने पर कि वह नाराज क्यों हैं ? तब उसने बताया कि नौकरी पर जाने के लिए उसे सात लाख रूपये भरने होंगे | उसने बताया कि उसे मदद करनेवाला कोई नहीं | उसके परिवार वालों ने निकम्मा समझकर उसे घर से निकाल दिया था | नारजगी में ही उसने कहा था कि वह कहीं से जुगाड़ कर ही लेगा | या अपनी किडनी बेचकर रूपयों की व्यवस्था करेगा | फैजल की बातों को सुनकर जुबेदा से रहा नहीं गया | उसने फैजल के मुह पर हाथ रखते हुए कहा था |
“ फैजल, तू ऐसा क्यों सोचता हैं कि तेरा कोई नहीं | मैं हूँ ना तेरे साथ | तुझे किडनी बेचने और जुगाड़ करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं | मैं तुझे दूँगी सात लाख रूपये | अब हम साथ में ही रखनेवाले हैं तो यह मेरे रूपये तेरे ही तो हैं | मैं तेरे लिए कुछ भी कर सकती हूँ फैजल ! तू मना मत करना |”
जुबेदा ने फैजल को साथ लाख का चेक दिया | पहले तो फैजल मना करता रहा पर जुबेदा के प्यार के सामने वह झुक गया था | अब फैजल और जुबेदा के जीवन में आनेवाला संकट टल गया था | दोनों का भविष्य सुनहरा होंनेवाला था | दोनों भविष्य के सुनहरे सपने संजो ने लगे थे | फैजल ने कह दिया था जुबेदा को वह एक महीने बाद शादी के लिए तैयार रहना | दोनों ने मंगल कार्यालय बुक कर दिया था | वे दोनों २०१९ के अप्रैल में विवाह गठबंधन में बंधने वाले थे | दोनों का सपना पूरा होने के लिए महज एक महीना बाकी था | जुबेदा लिस्ट बना रही थी | किसे बुलाना हैं और किसे नहीं | शादी में कौन-सा गीत कब चलेगा | खाने का मेनू सबकुछ तय हो चूका था | शादी के कार्ड भी छप गये थे | बस उसे बाँटना बाकी था | फैजल ने खुद कहा था कि वे दोनों मिलकर बाँटेगे | पर उसे छुट्टी नहीं मिल रही थी | इसीलिए यह काम जुबेदा को ही सोंप दिया था | जुबेदा ने शादी के कार्ड बाँट दिए थे | उनका विवाह लडकियों के लिए इर्षा का कारण बन गया था | ऐसी भव्य-दिव्य शादी होने वाली थी | जुबेदा ने खूब खर्च किया था | हिजड़ा वर्ग भी उसकी ख़ुशी से फुले नहीं समा रहा था | फैजल ने कहा था कि वह शादी वाले दिन सुबह जल्दी पहुंच जाएगा | शादी के लिए सिर्फ एक घंटा बाकि था पर फैजल का अबतक कोई पता नहीं था | फैजल ने बताया था कि उसका बोस बहुत कडक हैं | वह छुट्टी नहीं दे रहा हैं | बोस ने कहा था कि जाना हैं तो इस्तीफा देकर जाओ | इसीलिए फैजल जल्दी नहीं आ पा रहा था | जुबेदा अपने आप को समझा रही थी कि उसकी ट्रेन लेट होगी | फोन भी नहीं लग रहा था | शादीवाले स्थान पर सबकुछ तैयार था | बहुत सारे लोग उसके शादी में आये थे | शादी के लिए पसंद किया गीत बज रहा था | ‘डोली सज़ा के रखना, लेने तुझे ओ गोरी आयेंगे तेरे सजना |’ आखिर फैजल को फोन लग ही गया |
“ फैजल कहाँ हो, कब आ रहे हो | शादी का वक्त हो गया हैं | यहाँ सबकुछ तैयार हैं | वह मेरा वाला गीत भी चल रहा हैं | कब आ रहे हो, शादी के लिए सिर्फ एक घंटा ही बचा हैं | कहाँ तक पहुँचे हो |”
जुबेदा की बात सुन रहे फैजल ने थोड़ी देर कुछ नहीं कहा | बाद में फोन पर उसके जोर-जोर से हँसने की आवाज आने लगी | जुबेदा को ऐसे लगा कि फैजल मजाक कर रहा हैं और वह बाहर आ गया हैं | पर उसकी हँसी धीरे-धीरे बदलने लगी थी | उसने कहा, “ अबे हिजड़े, सपने देख रहा हैं क्या ? मैं और तुझसे शादी करूंगा | मेरे लिए लड़कियों की कोई कमी हैं क्या ? जो तेरे साथ शादी करूंगा | और तू शादी के लिए मेरा इंतजार कर रही हैं | मैं तुझे जीवन भर सुखी रखूँगा | तुझ से शादी करूँगा | घर बसायेंगे | ऐसे ही कहा था ना मैंने | मुझे तुझ में नहीं हिजड़े, तेरे पैसों से प्यार था | समझी | और अब रख फोन फिर दुबारा फोन मत करना |” और उसने फोन काट दिया |
अप्रैल माह के अंत की भीषण गर्मी पड़ रही थी | उस दिन अख़बार में ४५ डिग्री सेल्सियस तापमान रिकोर्ड हुआ था | शादी वाले स्थान पर अब भी वही गीत चल रहा था | “डोली सज़ा के रखना” |
डॉ. सुनिल जाधव
शिक्षा : एम.ए.{ हिंदी } नेट ,पीएच.डी
कृतियाँ :
कविता : १.मैं बंजारा हूँ २.रौशनी की ओर बढ़ते कदम ३.सच बोलने की सजा ४.त्रिधारा ५. मेरे भीतर मैं
कहानी : १.मैं भी इन्सान हूँ २.एक कहानी ऐसी भी .
शोध :१.नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य २.हिंदी साहित्य विविध आयाम ३.दलित साहित्य का एक गाँव
अनुवाद : १.सच का एक टुकड़ा [ नाटक ]
एकांकी १.भ्रूण
संशोधन : १.नागार्जुन के काव्य में व्यंग्य का अनुशीलन
२.विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में लगभग पचास आलेख प्रकाशित
अलंकरण एवं पुरस्कार : १.अंतर्राष्ट्रीय सृजन श्री पुरस्कार [ताशकंद]
२. अंतर्राष्ट्रीय सृजन श्री पुरस्कार [दुबई]
३.भाषा रत्न [दिल्ली]
४.अंतर्राष्ट्रीय प्रमोद वर्मा सम्मान [कम्बोडिया ]
५. विश्व हिंदी सचिवालय, मोरिशियस दवारा कविता का अंतर्राष्ट्रीय प्रथम
पुरस्कार
विदेश यात्रा : १.उज्बेक [रशिया ] २.यू.ए.इ ३.व्हियतनाम ४.कम्बोडिया ५.थायलंड
विभिन्न राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में आलेख, कविता, कहानियाँ प्रकाशित :-
नव्या ,सृजन गाथा, प्रवासी दुनिया, रचनाकार, पुरवाई, रूबरू, हिंदी चेतना, अम्स्टेल गंगा,
साहित्य सरिता, आर्य संदेश, नव निकष , नव प्रवाह, १५ डेज, अधिकार, रिसर्च लिंक,
शोध समीक्षा एवं मूल्यांकन, संचारिका, हिंदी साहित्य आकादमी शोध पत्रिका, केरल,
आधुनिक साहित्य, साहित्य रागिनी, खबर प्लस ..आदि |
ब्लॉग : navsahitykar.blogspot.com
काव्य वाचन :
१. अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन, ताशकंद
२. अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन,दुबई
३. विश्व कवि सम्मेलन, कैनडा
४. अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन,कम्बोडिया
सम्प्रति : हिंदी विभाग ,यशवंत कॉलेज, नांदेड
पता : नांदेड ,महाराष्ट्र -०५