तुमने कभी
जीवन जिया होता
राम -कृष्ण -सा
पर -अश्रु का पेय
तो पिया होता
नानक,बुद्ध जैसे
रखते धीर ,
बनते महावीर।
सत्य है अब हास -
हरिश्चन्द्र को ,
कहावत में ढाले
चाणक्य जैसे
कौन युग सँभाले?
विवेकानंद
टैगोर- अम्बेडकर
गाँधी -नेहरू
के वे महान् विचार
मन उतारें।
वीर मंगल -पांडे,
लौहपुरुष,
भगत ,सुखदेव ,
राजगुरु की
कहाँ गई दहाड़?
पृथ्वी -शिवाजी-
ब्रह्म-रन्ध्र भेदती
सिंह- हुंकार! ।
आज का नर बना
बड़ा संकीर्ण
सत्कर्मों में है क्षीण,
अपनों से ही
महाप्रलय-पाप !
समझो अब
जीवन का वो मर्म
छोडो दुष्कर्म -
देखो!भारत -माता
माँग रही है-
शुद्ध -सुख -उत्थान
पुन: देश- निर्माण।
- ज्योत्स्ना प्रदीप
शिक्षा : एम.ए (अंग्रेज़ी),बी.एड.
लेखन विधाएँ : कविता, गीत, ग़ज़ल, बालगीत, क्षणिकाएँ, हाइकु, तांका, सेदोका, चोका, माहिया और लेख।
सहयोगी संकलन : आखर-आखर गंध (काव्य संकलन)
उर्वरा (हाइकु संकलन)
पंचपर्णा-3 (काव्य संकलन)
हिन्दी हाइकु प्रकृति-काव्यकोश
प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन जैसे कादम्बिनी, अभिनव-इमरोज, उदंती, अविराम साहित्यिकी, सुखी-समृद्ध परिवार, हिन्दी चेतना ,साहित्यकलश आदि।
प्रसारण : जालंधर दूरदर्शन से कविता पाठ।
संप्रति : साहित्य-साधना मे रत।