पिता के प्यार से बढ़कर ,नही दौलत जमाने में;
जो’ खुद को फूँक देते हैं, हमें रौशन बनाने में ।।
घटा छाये या तूफाँ हो, न ऊँगली छोड़ते हैं वो ;
दुखों में भी हमेशा हँसके ,सबको जोड़ते हैं वो ।
बने नैया के हैं मांझी, जो सागर पार जाने में।।
पिता के प्यार से बढ़कर नही दौलत जमाने में….
मेरे बाबुल तुम्हारे साथ,मेरी जिंदगानी है;
तुम्हारी ही दुआओं से ,बनी दुनिया सुहानी है;
हमारे वास्ते खुशियाँ ही, रहती हैं तराने में ,
पिता के प्यार से बढ़कर नही दौलत जमाने में..
- डॉ. पूर्णिमा राय
शिक्षिका एवं लेखिका
ग्रीन एवनियू, अमृतसर(पंजाब)