ग़ज़ल : सुशील ‘साहिल’

 

ज़ुल्फ़ जब उसने बिखेरी बज़्मे-ख़ासो-आम में

फ़र्क़ बेहद कम रहा उस वक़्त सुब्हो-शाम में

 

झाँककर परदे से उसने इक नज़र क्या देख ली

जी नहीं लगता हमारा अब किसी भी काम में

 

सिर्फ़ ख़ाकी, खादी पर उठती रही हैं उंगलियाँ

मुझको तो नंगे नज़र आये हैं सब हम्माम में

 

मान-मर्यादा, ज़रो-ज़न, इज्ज़तो, ग़ैरत तमाम

क्या नहीं गिरवी पड़ी है ख्व़ाहिशे-ईनाम में

 

एक दिन में मुफलिसों का दर्द क्या समझेंगे आप

कुछ महीने तो गुज़ारें आके ख़ासो-आम में

 

हैफ़ ‘साहिल’ तू ने भी तोड़ा भरोसे का भरम

बिक गईं ख़ुद्दारियाँ तेरी भी सस्ते दाम में
- सुशील ‘साहिल’

जन्म : सुपौल ज़िला (बिहार )

शिक्षा : १. इंजीनियरिंग की डिग्री ( यांत्रिक), एम. आई. टी. मुज़फ्फ़रपुर

२. संगीत प्रभाकर , प्रयाग संगीत समीति इलाहबाद

३. संगीत विशारद , प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़

पेशा : प्रबन्धक(उत्खनन), इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड, ललमटिया, गोड्डा-(झारखण्ड)

वर्तमान पता : जिला : गोड्डा , झारखण्ड , पिन : 814154

साहित्यिक/सांस्कृतिक गतिविधियाँ/उपलब्धियाँ:

- अखिल भारतीय स्तर पर विभिन्न मंचों से ग़ज़लों की प्रस्तुति

- सुगम संगीत एवं लोकगीत में आकाशवाणी का अनुबंधित कलाकार

- आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओं / ग़ज़लों का अनेकों प्रसारण

- हिंदी एवं उर्दू के प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में ग़ज़लों का प्रकाशन

सम्मान : 1. राजभाषा प्रेरक सम्मान वर्ष2011, गुरुकुल कांगड़ी
विश्वविद्यालय हरिद्वार 2. काव्यपाठ के लिए वर्ष 1912 में नागार्जुन
सम्मान (खगड़िया, बिहार ) एवं 3. कवि मथुरा प्रसाद ‘गुंजन’ सम्मान वर्ष
1912(मुंगेर बिहार ). 4 विद्यावाचस्पति सम्मान, विक्रमशिला
विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार, वर्ष 2013.

पुस्तक : ‘गुलेल’ ( ग़ज़ल संग्रह ) जिसका विमोचन श्री लंका के कैंडी शहर
में 19.01.2014 को तथा विश्वपुस्तक मेला प्रगति मैदान दिल्ली में 23.
03.2014 को सम्पन्न हुआ

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