कुछ तुम कह दो

 

कुछ तुम कह दो कुछ हम कह दें
कहने सुनने का मौसम है,
कितनी बातें करनी है तुमसे
तुम न जनों, मैं न जानूं।
कुछ तुम कह दो कुछ हम कह दें
बातें हो जाएँ पूरी मेरी
फिर मिले न मिले ये वक़्त हमें
बातें रह जाएँगी अधूरी।
कुछ तुम कह दो कुछ हम कह दें
हम चलते जाएँ बिना कुछ कहे
मिल जाएँ जो पंख हमें
हम उड़ जाएँ कहीं दूर गगन में।

 

 

-स्वाति सिंह देव

वाणिज्य प्रबंधन में स्नातकोतर पूरा करने के बाद वाराणसी में कुछ दिनों बैंक में कार्यरत रहीं|

विवाह के तत्पश्चात कुवैत आयीं| हिंदी लेखन, नृत्य और चित्रकारी में रूचि रखती हैं|

 

 

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