चहुँ ओर गूँज रही है
एक ही आवाज,
जीवन का बन गया है
ये एक अभिन्न यन्त्र
“ओम पैसाय नमः”
जपते रहने का है ये मंत्र
हो रहा है हर तरफ,
इसका ही जाप
कह-कह कर
“ओम पैसाय नमः”
धुल रहे हैं लोग
अपने पाप
मन्त्र है ये पुराना,
पर कलयुग में
अपने महत्व को
इसने है पहचाना
क्या रंग है क्या है रूप
खिली है देखो चारो ओर ,
“ओम पैसाय नमः”की
सुन्दर धूप
मुर्दे में भी जान फूंक दे,
आलसी में भर दे तरंग
“ओम पैसाय नमः”का
क्या सुंदर है ये रंग
महिमा इसकी अपरम्पार है
साधु-सन्यासियों पर भी
फेंका इसने अपना जाल है
बिन मेवा न होगी अब
कोई “अमित” सेवा,
दोस्तों “ओम पैसाय नमः”
का ये आया काल है
जिसने खोजा ये मंत्र
था वो भी बड़ा कोई संत ,
रमा कर “ओम पैसाय नमः”की धूनी,
दुनिया उसने खूब घूमी
लिख-लिख कर
“ओम पैसाय नमः” की महिमा
मै भी इसके भंवर में डूब गया हूँ,
और अपने मन की शान्ती को
यारों! यहाँ – वहाँ फिर से ढूढ़ रहा हूँ
- अमित कुमार सिंह
बनारस की मिट्टी में जन्मे अमित जी की बचपन से कविता और चित्रकारी में रूचि रही है|
कालेज के दिनों में इन्होने विश्वविद्यालय की वार्षिक पत्रिका का सम्पादन भी किया|
अमित कुमार सिंह टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं|
इनकी कवितायेँ और लेख अनुभूति, हिंदी चेतना, दैनिक जागरण, सुमन सौरभ, कल्पना, हिंदी नेस्ट , वेब दुनिया, भोज पत्र, भोजपुरी संसार , रचनाकार एवं अनेकों पत्रिकाओं में छप चुकी है|
पिछले कई वर्षों से ये कनाडा से प्रकाशित होने वाली पत्रिका हिंदी चेतना से जुड़े हुए हैं|
इनकी पेंटिंग्स टाटा कंपनी की मैगज़ीन में कई बार प्रकाशित हो चुकी है और देश विदेश की कई वर्चुअल आर्ट गैलरी में प्रकाशित हैं |
दो बार ये अपने तैल्य चित्रों की प्रदर्शनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के ऑफिस प्रांगड में लगा चुके हैं |
वर्तमान में ये हॉलैंड में कार्यरत है और हॉलैंड से प्रकाशित होने वाली हिंदी की प्रथम पत्रिका अम्स्टेल गंगा के प्रधान सम्पादक और संरक्षक हैं |