अनसुनी पुकार

वो चीखी थी,

चिल्लाई थी..

रो कर, लड़कर, हठकर

जताया था अपना विरोध भी।

पर बहलाकर, समझाकर

झूठा सच दिखलाकर

कर दिया उसे मौन।

शांत थे उसके होंठ और आंखें,

मन में आग थी..

आंसुओं का समंदर दिल में।

मिले थे तो जुड़े थे दोनों,

टूटे, तो बिखरी सिर्फ वो क्यों।

उसके मन से निकाली चित्कार

सिर्फ उसके कानों में गूंज रही।

उसकी ढलती आंखों से

सपने भी मुंह मोड़ गए।

उखड़ती सांसे, बिखरता बसेरा,

इस पसरे अंधेरे को,

न समेटेगा कोई सवेरा।

अनसुनी रह गई,

फिर उसकी पुकार।

इस बार की हार

उसने कर ली स्वीकार।

आशाओं, इच्छाओं को

किया अलविदा।

सो गई वो देने

रूह को आराम,

जीवन को लगा कर

पूर्णविराम!

 

- शिखा द्धिवेदी

 

व्यवसाय  - मीडिया प्रोफेशनल

शिक्षा- भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली से हिन्दी पत्रकारिता में डिप्लोमा (2004-05)

उपलब्धि- स्नातक में बहुमुखी प्रतिभा के लिए स्वर्ण पदक।

       पत्रकारिता में डिप्लोमा के साथ राजस्थान पत्रिका पुरस्कार।

       राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई निबंध लेखन,वाद-विवाद और प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता में विजेता।

अनुभव- नई दिल्ली में 2010 में हुए कॉमनवेल्थ खेलों में बतौर असिस्टेंट मीडिया मैनेजर कार्य किया।

       हिन्दी समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया में आउटपुट एडिटर के रूप में (2007 से 2009) तक कार्य किया।

       हिन्दी समाचार चैनेल S1 न्यूज़ में प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में (2005 से 2007) तक काम किया।

       ‘मेरी पोटली’ ब्लॉग की लेखिका।

       दैनिक समाचार पत्र जनसत्ता में लेख प्रकाशित।

       साहित्यिक पत्रिका परिकथा में कविताएं प्रकाशित।

       विश्व हिन्दी पत्रिका 2013 में आलेख का प्रकाशन।

 पता- कानपुर, भारत

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