अधजल गगरी छलकत जाए

 

कमल मेरा नया – नया दोस्त बना है। लगता है कि शेखी बघारना उसकी फितरत है।
कल मिला तो उसने अपने नाना , दादा , मामा और चाचा की तारीफों के पुल बाँधने शुरू
कर दिए। कहने लगा – ” दोस्त , मेरे नाना जी इतने सुन्दर थे कि अँगरेज़ युवतियाँ गोपियों
की तरह उनके आगे – पीछे डोलती फिरती थीं। जब उनका ब्याह हुआ था तो एक अँगरेज़
युवती ने आत्म ह्त्या कर ली थी। मेरे दादा जी की योग्यता का क्या कहना ! वह अंग्रेज़ी बोलते
थे तो अँगरेज़ वाह , वाह कह उठते थे। कई अँगरेज़ उनके मित्र थे , सबका यही कहना
था – ` अंग्रेज़ी बोलने में आप लाजवाब हैं। अँगरेज़ होते हुए भी हम आपका मुकाबला नहीं
कर सकते हैं। ` मेरे मामा जी तो रईस थे रईस। कई राजे – महाराजे और नवाब उनका
हुक्का भरते थे और मेरे चाचा जी , उनकी तो बात ही निराली थी ! उन्होंने अंग्रेज़ी ,
संस्कृत और इतिहास में तीन – तीन एम ए कर रखी थीं। सरकारी विभाग में सीनियर
एडवाइज़र थे। पांच हज़ार रूपये उनकी मंथली इनकम थी। मैं तब की बात कर रहा हूँ
जब भारत के दो टुकड़े नहीं हुए थे। पंजाब के गवर्नर उनकी योग्यता का सिक्का मानते
थे। मेरे दोस्त , मेरे नाना – दादा हों या मेरे मामा – चाचा , खूबियाँ ही खूबियाँ थीं उनमें। ”
” बहुत खूब ! कोई अपनी खूबी भी सुना मेरे दोस्त। ”
वो अपनी खूबी क्या सुनाता ! दसवीं में तीन बार फैल था।

 

- प्राण शर्मा

ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक प्राण शर्मा की संक्षिप्त परिचय:

जन्म स्थान: वजीराबाद (पाकिस्तान)

जन्म: १३ जून

निवास स्थान: कवेंट्री, यू.के.

शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में हुई, पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए., बी.एड.

कार्यक्षेत्र : छोटी आयु से ही लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था. मुंबई में फिल्मी दुनिया का भी तजुर्बा कर चुके हैं. १९५५ से उच्चकोटि की ग़ज़ल और कवितायेँ लिखते रहे हैं.

प्राण शर्मा जी १९६५ से यू.के. में प्रवास कर रहे हैं। वे यू.के. के लोकप्रिय शायर और लेखक है। यू.के. से निकलने वाली हिन्दी की एकमात्र पत्रिका ‘पुरवाई’ में गज़ल के विषय में आपने महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। आप ‘पुरवाई’ के ‘खेल निराले हैं दुनिया में’ स्थाई-स्तम्भ के लेखक हैं. आपने देश-विदेश के पनपे नए शायरों को कलम मांजने की कला सिखाई है। आपकी रचनाएँ युवा अवस्था से ही पंजाब के दैनिक पत्र, ‘वीर अर्जुन’ एवं ‘हिन्दी मिलाप’, ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ जैसी अनेक उच्चकोटि की पत्रिकाओं और अंतरजाल के विभिन्न वेब्स में प्रकाशित होती रही हैं। वे देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं।
प्रकाशित रचनाएँ: ग़ज़ल कहता हूँ , सुराही (मुक्तक-संग्रह).
‘अभिव्यक्ति’ में प्रकाशित ‘उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल’ और साहित्य शिल्पी पर ‘ग़ज़ल: शिल्प और संरचना’ के १० लेख हिंदी और उर्दू ग़ज़ल लिखने वालों के लिए नायाब हीरे हैं.

सम्मान और पुरस्कार: १९६१ में भाषा विभाग, पटियाला द्वारा आयोजित टैगोर निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार. १९८२ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार. १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स, लेस्टर द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार.
२००६ में हिन्दी समिति, लन्दन द्वारा सम्मानित.

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