हाइकु – ज्योत्स्ना प्रदीप

गुरु वशिष्ठ

साक्षात् सदा है इष्ट

पुण्य अभीष्ट ।

वो एक छवि

बनाये आदि कवि

साहित्य -रवि ।

तुलसीदास

श्रद्धा भक्ति का बनें

मीठा- सा हास ।

श्रवण -मन

दशरथ -समय

भूल से बींधे

वो एक कोख

माँ में बसा साकेत

दिव्य आलोक।

श्री राम- जन्म

ऋणी हुई आजन्म

माँ वसुंधरा।

ताड़का -भार

मर्यादा पुरुष वे

करें उद्धार !

उर -अहल्या

इस ओर अभी तक

राम न आए ।

तेरी छुअन

है कितनी पावन

स्तब्ध गगन !
१०

सिय का उर

झंकृत राम -ध्वनि

बाजे नूपुर ।
११

धनुष- भंग

सूर्य- किरण -संग

नवल रंग ।
१२

एक वचन

अनगिन नयन

बने सागर |
१३

हाय वो पल

अयोध्या थी तरल

समय -छल।
१४

वन सघन

सिय ,राम ,लखन

भरी उजास ।
१५

विदा पिता की

न देख सके राम

अग्नि चिता की ।
१६

प्रसून राम ।

पात भरत देते,

झुक सम्मान
१७

अनोखा प्यार

पद पादुकाएँ ले

राज्य का भार ।
१८

भोली- सी हठ

श्री राम के चरणों

पड़े केवट ।
१९

वो स्वर्ण -मृग

भिगो गया नयन

सौम्य-सुभग ।
२०

वो एक रेखा

करके अनदेखा

ये भाग्य -लेखा !
२१

वो पर्णकुटी

सूनी बिन वैदेही

थी लुटी-लुटी ।
२२

वो दम्भी भाल

पुनीता के अश्रु ने

लिखा था काल
२३

नारी -सम्मान

देह त्यागे गरुड़

खूब प्रणाम !
२४

कमल नेत्र

बने है नदियों के

सजल क्षेत्र ।
२५

राम- का उर

वैदेही- विरह से

सूना विग्रह ।
२६

टूटे है धीर

रोते हैं रघुवीर

जानों तो पीर ।
२७

लखन के नीर

संतप्त समय में

हुए अधीर ।
२८

एक शबरी

बनी भरी गगरी

बिन राम के ।
२९

बेरों में बसी

वो श्रद्धा शबरी की

सजल हँसीं।
३०

हे हनुमंत

श्रीराम से मिले थे

प्रीत अनंत ।
३१

तैरे पत्थर

लिखा थ राम नाम

बड़ा सुन्दर !
३२

करुणा बहे

खग विहगों में भी

वो कवि कहें ।
३३

भालू ,वानर,

मानव मिलकर

विजय- ओर ।
३४

एक शक्ति

स्वयं प्रभु से भी

पुजती रही ।
३५

एक वो सेतु

बनाया था पुण्य की

विजय हेतु ।
३६

लंका -प्रवेश

करते हनुमान-

‘जय श्री राम ‘
३७

है लंका स्वर्ण

ये किसके आँगन

तुलसी -पर्ण !
३८

अशोक- तले

विरह -अगन में

वैदेही जले ।
३९

एक तिनका

दुःख में कवच था

हर दिन का ।
४०

लो तार -तार

रावण -अहंकार

सिया समक्ष ।
४१

संत कपीश

माता जानकी उन्हें

देतीं आशीष ।
४२

महासमर

विभीषण -वानर

हैं राम संग ।
४३

था दम्भ ध्वस्त

श्री राम ऋणी तेरा

जग समस्त ।
४४

मन -रावण

फूँक कर तो देखो

तभी उत्सव ।
४५

पीड़ा है भारी

अग्नि परीक्षाएँ

अब भी जारी ।
४६

दीप मुस्काए

तम का पलायन

श्रीराम आएँ ।
४७

हर धाम की

मर्यादा श्री राम की

दीप्त दीप -सी ।
४८

धोबी का मान !

राम तुम्हें जग की

है राम -राम ।
४९

राम ने किया

आदर्शों से हवन

स्वाहा इच्छाएँ ।
५०

ये कैसी विदा

संतप्त वैदेही की

न सुनी निन्दा ।
५१

किसने छीनी

सुगंध सुमनों की

वो भीनी -भीनी।
५२

एक सरयू

हृदय से बही तो

राम पुकारे ।
५३

हाँ राम रोते

पर अयोध्यावासी

चैन से सोते ।
५४

सिय के मन

बसे रघुनन्दन

सूना -सा वन ।

 

५५

प्रणय -मोती

सीप-गर्भ को देते

तम में ज्योति ।
५६

ऐसी समाई

पुनीता धरती में

फिर न आई ।

 

५७

दो प्यारे नग

अयोध्या के कोष को

मिले सुभग ।
५८

सूखी सरयू

राम ने न तोड़ी

जल समाधि।
५९

हे राम सिय

मर्यादा ,शुचिता का

दे दो अमिय ।
६०

पूजो राम तो

मन अभिराम हो

अविराम हो ।

 

६१
रावण जलें

मन में हों जितने

जयी अयोध्या ।

 

- ज्योत्स्ना प्रदीप

शिक्षा : एम.ए (अंग्रेज़ी),बी.एड.
लेखन विधाएँ : कविता, गीत, ग़ज़ल, बालगीत, क्षणिकाएँ, हाइकु, तांका, सेदोका, चोका, माहिया और लेख।
सहयोगी संकलन : आखर-आखर गंध (काव्य संकलन)
उर्वरा (हाइकु संकलन)
पंचपर्णा-3 (काव्य संकलन)
हिन्दी हाइकु प्रकृति-काव्यकोश

प्रकाशन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन जैसे कादम्बिनी, अभिनव-इमरोज, उदंती, अविराम साहित्यिकी, सुखी-समृद्ध परिवार, हिन्दी चेतना ,साहित्यकलश आदि।

प्रसारण : जालंधर दूरदर्शन से कविता पाठ।
संप्रति : साहित्य-साधना मे रत।

2 thoughts on “हाइकु – ज्योत्स्ना प्रदीप

  1. हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना जी ..बहुत सुंदर हाइकु

  2. भारतीय संस्कृति को उजागर करते सुन्दर हाइकु | रचनाकार ज्योत्सना प्रदीप को बधाई | – सुरेन्द्र वर्मा |

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