बसंत की कवितायेँ – प्राण शर्मा

फूलों की ख़ूब धूम मची है बसंत में
क्या झूम के बयार बही है बसंत में
फूलों के जेवरों से सजी है बसंत में
हर वाटिका दुल्हन सी बनी है बसंत में
मन क्यों न बार-बार रमे उसमें साथियों
खुशबू ही खुशबू फैली हुयी है बसंत में
आओ चलें बगीचे में कुछ वक़्त के लिए
क्या गुनगुनी सी धूप खिली है बसंत में
उस शोखी का जवाब नहीं दोस्तो कहीं
जिस शोखी में पतंग उड़ी है बसंत में
कम्बल,रजाइयों की ज़रुरत नहीं रही
सर्दी की लहर लौट गयी है बसंत में
कण-कण धरा का आज हुआ स्वर्ण की तरह
ये किस की ` प्राण ` जादूगरी है बसंत में
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कलियों को बनते सुमन मधुमास में
देखिये,कुदरत का फ़न मधुमास में
ताज़ा कुछ ऐसा है तन मधुमास में
पल में मिटती है थकन मधुमास में
खुशबुएँ ही खुशबुएँ हैं हर तरफ
क्यों न इतराये चमन मधुमास में
धरती दुल्हन लगती है हर एक को
दुल्हा लगता है गगन मधुमास में
छेड़खानी करता है  हर फूल से
कितना नटखट है पवन मधुमास में
आया है तो साल भर यूँ ही रहे
कितना अलबेला है मन मधुमास में
क्यों न मोहे हर किसीको हर घड़ी
` प्राण ` धरती की फबन मधुमास में
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होते ही प्रात:काल आ जाती हैं तितलियाँ
मधुवन में ख़ूब धूम मचाती हैं तितलियाँ
फूलों से खेलती हैं कभी पत्तियों के संग
कैसा अनोखा खेल दिखाती हैं तितलियाँ
बच्चे , जवान , बूढ़े नहीं थकते देख कर
किस सादगी से सबको लुभाती हैं तितलियाँ
सुंदरता की ये देवियाँ परियों से कम नहीं
मधुवन में स्वर्गलोक रचाती हैं तितलियाँ
उड़ती हैं किस कमाल से फूलों के आसपास
दीवाना हर किसीको बनाती हैं तितलियाँ
वैसा कहाँ है जादू किसी और पंछी में
तन – मन में जैसा जादू जगाती हैं तितलियाँ
इनके ही दम से `प्राण` हैं हर ओर रौनकें
बगियों का चप्पा – चप्पा सजाती हैं तितलियाँ
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धरा और गगन को वो फिर भा गया है
बहारों का राजा बसंत आ गया है
ये राजा है सुन्दर कि इसके असर से
नया रूप हर एक पर  छा गया है
बसंती हवाएँ महकने लगी हैं
हरिक फूल कुछ ऐसा महका गया है
भला क्यों न खुश हो किसानों की टोली
कि हर खेत सरसों से लहरा गया है
सभी पीले परिधान में जँच रहे हैं
लो बलिदान का अब समय आ गया है

- प्राण शर्मा

ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक प्राण शर्मा की संक्षिप्त परिचय:

जन्म स्थान: वजीराबाद (पाकिस्तान)

जन्म: १३ जून

निवास स्थान: कवेंट्री, यू.के.

शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में हुई, पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए., बी.एड.

कार्यक्षेत्र : छोटी आयु से ही लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था. मुंबई में फिल्मी दुनिया का भी तजुर्बा कर चुके हैं. १९५५ से उच्चकोटि की ग़ज़ल और कवितायेँ लिखते रहे हैं.

प्राण शर्मा जी १९६५ से यू.के. में प्रवास कर रहे हैं। वे यू.के. के लोकप्रिय शायर और लेखक है। यू.के. से निकलने वाली हिन्दी की एकमात्र पत्रिका ‘पुरवाई’ में गज़ल के विषय में आपने महत्वपूर्ण लेख लिखे हैं। आप ‘पुरवाई’ के ‘खेल निराले हैं दुनिया में’ स्थाई-स्तम्भ के लेखक हैं. आपने देश-विदेश के पनपे नए शायरों को कलम मांजने की कला सिखाई है। आपकी रचनाएँ युवा अवस्था से ही पंजाब के दैनिक पत्र, ‘वीर अर्जुन’ एवं ‘हिन्दी मिलाप’, ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ जैसी अनेक उच्चकोटि की पत्रिकाओं और अंतरजाल के विभिन्न वेब्स में प्रकाशित होती रही हैं। वे देश-विदेश के कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा आकाशवाणी कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं।
प्रकाशित रचनाएँ: ग़ज़ल कहता हूँ , सुराही (मुक्तक-संग्रह).
‘अभिव्यक्ति’ में प्रकाशित ‘उर्दू ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल’ और साहित्य शिल्पी पर ‘ग़ज़ल: शिल्प और संरचना’ के १० लेख हिंदी और उर्दू ग़ज़ल लिखने वालों के लिए नायाब हीरे हैं.

सम्मान और पुरस्कार: १९६१ में भाषा विभाग, पटियाला द्वारा आयोजित टैगोर निबंध प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार. १९८२ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार. १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स, लेस्टर द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार.
२००६ में हिन्दी समिति, लन्दन द्वारा सम्मानित.

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