बरसाती बचपन
अब भी जवां है
साँस ले रहा है
गलियों में खड़े
बारिश के पानियों के बीच
कुल्लियाँ करती साइकलों के साथ
अब भी जवां है
साँस ले रहा है
गलियों में खड़े
बारिश के पानियों के बीच
कुल्लियाँ करती साइकलों के साथ
न उलझन है न उधेड़बुन
बस मन है मस्त मगन
बस मन है मस्त मगन
स्कूल के भारी बस्तों के बोझ से
बेख़बर हो
कापियों के कोरे पन्ने फाड़ कर
छोटी छोटी लहरियाँ बनाने में
उन्हें बहाने में, दौड़ लगाने में
नन्हें हाथों से चप्पू मारते हुए
ख़ूब मन और तन भीग जाता था
बेख़बर हो
कापियों के कोरे पन्ने फाड़ कर
छोटी छोटी लहरियाँ बनाने में
उन्हें बहाने में, दौड़ लगाने में
नन्हें हाथों से चप्पू मारते हुए
ख़ूब मन और तन भीग जाता था
सुढ़-सुढ़ बहती नाक
और खाँसते हुए मुन्ने को देखकर
तेरा डाँट लगाना
भुला नहीं पाता
एहसास हो जाता था जब खांगते थे
तब सबसे बड़ा हक़ीम तुम ही होती थी
और खाँसते हुए मुन्ने को देखकर
तेरा डाँट लगाना
भुला नहीं पाता
एहसास हो जाता था जब खांगते थे
तब सबसे बड़ा हक़ीम तुम ही होती थी
स्टोव पे गर्म चाय होती थी
और हम कोने में ममता की छतरी में
दुबके होते थे सुगबुगाहट लिए
हाथों को बगलों में दबाए हुए
सारा रोम-रोम खड़ा हो जाता था
तुम हाथों से चाय पिला देती थी
वहीँ ऊँघते हुए नींद की ख़ुमारी में
डूब जाते
आजकल तन्हाइयों की चादर तले
वही बचपन के किस्सों के काग़ज़ों को
आँसुओं में तैरा लेते हैं
और हम कोने में ममता की छतरी में
दुबके होते थे सुगबुगाहट लिए
हाथों को बगलों में दबाए हुए
सारा रोम-रोम खड़ा हो जाता था
तुम हाथों से चाय पिला देती थी
वहीँ ऊँघते हुए नींद की ख़ुमारी में
डूब जाते
आजकल तन्हाइयों की चादर तले
वही बचपन के किस्सों के काग़ज़ों को
आँसुओं में तैरा लेते हैं
अब, आधे पैर की निकरें नहीं है
राह में जब कभी बारिश होती है
तो पेन्ट्स के पौचों को मोड़ते हुए
निक्कर बना लेते हैं और जहाँ पानी भरा हो
ख़ूब उछलते हैं और
छप्पाक छप्पाक की आवाज़ों में
बचपन फिर से जवाँ हो जाता है
जो अब भी साँस लेता है
पर अब मेरी ममता की छतरी नहीं है
आज बरसा है ख़ूब बरसा है
पर तेरा नन्हा ख़ूब तरसा है
राह में जब कभी बारिश होती है
तो पेन्ट्स के पौचों को मोड़ते हुए
निक्कर बना लेते हैं और जहाँ पानी भरा हो
ख़ूब उछलते हैं और
छप्पाक छप्पाक की आवाज़ों में
बचपन फिर से जवाँ हो जाता है
जो अब भी साँस लेता है
पर अब मेरी ममता की छतरी नहीं है
आज बरसा है ख़ूब बरसा है
पर तेरा नन्हा ख़ूब तरसा है
- डॉ. संगम वर्मा

जन्म: 17 अप्रैल , शिकोहाबाद (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा: एमए (हिन्दी) स्वर्ण पदक, यूजीसी. नेट, हिन्दी-2006, जे आर एफ़ 2009,
शोध कार्य- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य में तदयुगीन परिदृश्य 2017
सम्प्रति: सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, स्नातकोत्तर राजकीय कन्या महाविद्यालय ,चण्डीगढ़, 160036
लेखन: 1) मानक हिन्दी व्याकरण
2) मानक हिन्दी कार्यशाला (संयुक्त लेखन)
प्रकाशन: विभिन्न राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में शोध-पत्र प्रकाशित एवं अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में पत्र वाचन, रेडियो पर काव्य पाठन और साक्षात्कार
संपादन: राष्ट्र भाषा हिन्दी स्मारिका, पंजाब
सम्मान: पंजाब स्तरीय ‘हिन्दी सेवी सम्मान’ (सन 2012, 2013, 2014 और 2015); खन्ना में “युवा कवि सम्मान”से सम्मानित
पत्राचार: गुरू हरकृष्ण नगर, खन्ना, ज़िला- लुधियाना