पत्र
पत्र , पत्रिका और पाठकों के बीच संवाद का माध्यम हैं।
आपके पत्र हमारा मनोबल बढ़ाते है। हमें और बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं।
आपके अपने खट्टे मीठे पत्रों की इस दुनिया में आपका स्वागत है…
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देश से दूर रहकर उससे जुड़ाव हम हिन्दुस्तानियों के लिए गर्व की बात है।
आप हमारी भाषा तथा संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए इस प्रकार प्रयत्नशील हैं।आपके प्रयास प्रशंसनीय हैं।
महोदय सुझाव दें कि पत्रिका में लेख किस प्रकार भेज सकते हैं और कब भेजना उचित होगा।
धन्यवाद!
गीता कपिल , वनस्थली विद्यापीठ राजस्थान
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सेवा में,
संपादक श्री,
अम्स्टेल गंगा हिंदी पत्रिका,
प्रोफेसर, हिंदी विभाग
कला संकाय, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा |
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अम्स्टेल गंगा,
पिछले एक हफ्ते से आपकी पत्रिका देख रहा हूं। यह संपूर्ण और सृजन के दृष्टिकोण से स्तरीय है। विचारों का प्रवाह सार्थक और समाज को दिशा देनेवाला है। मैं भी अपनी कविताएं भेज रहा हूं।
आग्रह के साथ
अमलेन्दु अस्थाना मुख्य उपसंपादक
दैनिक भास्कर, पटना।
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अम्स्टेल गंगा का नया अंक प्राप्त हुआ हार्दिक धन्यवाद | पत्रिका की सभी रचनाएं सराहनीय हैं |डॉ नरेश जी की ग़ज़ल “पीपल की छाँव”, ज्योत्सना प्रदीप जी की क्षणिकाएं ,रमेश राज जी की कविता “कागज़ के थैले”और संगीता गांघी जी की “गुलाब ” नामक वविता बहुत पसंद आई | सभी रचनाकारों को अनेक बधाई और शुभकामनाएं |इसी प्रकार हिंदी की सेवा करते रहें अनेक शुभकामनाएं |
धन्यवाद
सादर
सविता अग्रवाल “सवि”(कैनेडा )