तोड़ के बंधन

तोड़ जहां के बंधन तुम तो
राम शरण आ जाओ।
नील गगन के पक्षी सम ही
फिर स्वतंत्र हो जाओ।
माया ठगिनी सबने जाना
कोई मान न पाये।
इस माया की दुनिया से पर
कैसे  छूटें जाएँ।
तोड़ सको माया के  बंधन
तोड़ो सुख तब पाओ
नील गगन के पक्षी सम ही
फिर स्वतंत्र हो जाओ।
लक्ष्य बिना है जीवन अधूरा
लक्ष्य कोई  अपनाओ।
कृत संकल्प लक्ष्य पूरन को
राहों में बढ़ जाओ,
अपनी धुन में लगकर देखो
मंजिल फिर पाओ।
नील गगन के पक्षी सम ही,
फिर स्वतंत्र हो जाओ।
- रश्मि लता
शिक्षा – एम ए हिंदी
प्रकाशन - दो भजन संग्रह,एक काव्य संग्रह
प्रसारण – आकाश वाणी से दो कहानियां,रायपुर स्वरांजलि से  8 भजनों की सी डी
पुरस्कार - भजन प्रविष्टि को राष्ट्रीय प्रेम  साहित्य सम्मान काव्य गौरव कर्म वीर  अंतरराष्ट्रीय विविधता सम्मान व अन्य ।
सम्प्रति – आगमन,मातृ भाषा उन्नयन व G D फाउंडेसन की प्रदेश अध्यक्ष, लायन क्लब में मेम्बर

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