कभी छत पर कभी गलियों में आते-जाते हुए
एक दिन जिंदगी मिली थी मुस्कुराते हुए
उसका पूछा जो पता तो वो तनिक सकुचाई
वो सीता और सलमा, घूँघट-बुर्के में शरमाते हुए
कभी कोई एक मंजा खरीद कर लाया
और डोरी में बंधकर उसे जो उचकाया
वो पतंग बनकर बहुत ऊंचा उड़ना चाहती थी
काट डाले पर किसीने उसके फड़फड़ाते हुए
कहते हैं गीता जिसे वो हरेक मंदिर में
और कुरआन जिसे कहते है हर मस्जिद में
हैं बहुत शर्मनाक उनकी करतूते
उन्हें ही देखा उसके पन्ने फाड़कर जलाते हुए
है जिनको गर्व बहुत अपनी संस्कृति पर
उनसे लुटती रही सलमा और निर्भया बनकर
जिनका इतिहास दुर्गा और रानी झाँसी हैं
उन्हें ही देखा चीरहरण पे सर झुकाए हुए
आज भिखारन सही वो उनकी गलियों की
कल कटोरे में उसके कुछ न कुछ तो होगा ही
आज होगा नहीं तो फिर कल होगा
उसके फटे आँचल में कभी न कभी मखमल होगा
- डॉ. कविता भट्ट
शैक्षिक योग्यता- स्नातकोत्तर (दर्शनशास्त्र, योग, अंग्रेजी, समाजकार्य),
पुरस्कार- नेट, जे०आर० एफ०, जी०आर०एफ०, पी०डी०एफ०,
अध्यापन-अनुसन्धान अनुभव- क्रमश: छ:/चार वर्ष,हे०न० ब० गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड
प्रकाशित- तीन पुस्तकें, दो काव्य संग्रह, अनेक रास्ट्रीय-अंतरास्ट्रीय शोध पत्रिकाओ/पत्रिकाओ में लगभग चालीस शोध पत्र/लोकप्रिय लेख, अनेक रास्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओ में अनेक कविताएँ
शैक्षणिक/साहित्यिक/सामाजिक गतिविधियाँ- विभिन्न संगोष्ठियों, कवि सम्मेलनों में शोध-पत्रों और कविताओ का प्रस्तुतीकरण, योग शिविर आयोजन, आकाशवाणी से समकालीन विषयों पर वार्ताओं का प्रसारण, सदस्या- हिमालय लोक नीति मसौदा समिति
Nari ka astitva
Ati sunder. Aaj ke halaton ka sateek chit ran.
Hi. Kavita, I know u since childhood and the way you dream and made sincere efforts to fulfill your dreams are adorable. God bless u